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________________ १५३ प्रमेयपोधिनी टीका पद १७ सू० १२ नैरयिकोत्पत्यादिनिरूपणम् ॥ अथ तृतीयोदेशकः ॥ मूलम्-नेरइएणं भंते ! नेरइएसु उववज्जइ, अनेरइए नेरइएसु उववज्जइ ? गोयमा ! नेरइए नेरइएसु उववजइ नो अनेरइए नेरइएसु उववज्जइ, एवं जाव वेमाणियाणं, नेरइएणं भंते ! नेरइएहिंतो उववट्टइ, अनेरइए नेरइएहितो उवक्ट्टइ ? गोयमा ! अनेरइए नेरइएहितो उव: वट्टइ, णो नेरइए नेरइएहितो उववइ, एवं जाव वेमाणिए, नवरं जोइसियवेमाणिएसु चयणंति अभिलावो काययो, से नूणं भंते ! कण्हलेस्से नेरइए कण्हलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जइ, कण्हलेस्से उववदृइ, जल्लेसे उववजइ तल्लेस्से उक्वटइ ? हंता, गोयमा ! कण्हलेस्से नेरइए कण्हलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जइ, कण्हलेस्से उववइ, जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववइ, एवं नीललेस्से वि, एवं काउलेस्से वि, एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमारा, नवरं लेस्सा अब्भहिया, से पूर्ण भंते ! कण्हलेस्से पुढविकाइए काहलेस्सेसु पुढविकाइएसु . उवरज्जइ, कण्हलेस्से उववइ, जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेस्से उववट्टइ ? हंता, गोयमा ! कण्हलेस्से पुढविकाइए कण्हलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ, सिय कण्हलेस्से उववट्टइ, सिय नीललेस्से उववट्टइ, सिय काउलेस्से उववइ, सिय जल्लेस्से उववज्जइ सिय तल्लेस्से उववट्टइ, एवं नीलकाउलेस्सासु वि, से णूणं भंते ! तेउलेस्से पुढवीकाइए तेउलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववजाइ पुच्छा, हंता, गोयमा ! तेउ लेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ, सिय कण्हलेस्से उववइ सिय नीललेस्से उबवट्टइ, सिय काउलेस्से उबवट्टइ, तेउलेस्से उववज्जइ, नो चेव णं तेउलेस्से उववट्टइ, एवं आउकाइया वणस्सइकाइया वि, तेऊवाया एवं चेव, नवरं एएसिं तेउलेस्सा नस्थि, बितीय घउरिदिया एवं चेव, तिसु लेस्सासु, पंचेदियतिरिक्खजोणिया मणुस्साण य जहा पुढविकाइया आदिल्लिया, तिसु लेस्सासु भणिया प्र० २०
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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