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________________ प्रमेयबोधिनी का पद १७५० १२ जीवादि सलैश्याल्पवहुत्वनिरूपणम् १४५ तेजोलेश्येभ्यः पद्मलेश्या महद्धिकाः, पद्मलेश्येभ्यः शुक्ललेश्या महद्धिकाः, सर्वाल्पर्द्धिका जीवाः कृष्णले श्याः, सर्वमहर्द्धिकाः शुक्ललेश्याः, एतेषां खलु भदन्त ! नैरयिकाणां कृष्णछेश्यानां नीललेश्यानां कापोतलेश्यानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पर्द्धिका वा महर्दिका वा ? गौतम ! कृष्णलेश्येभ्यो नीललेश्या महर्द्धिकाः, नीललेश्येभ्यः कापोतलेश्या महर्द्धिकाः, सर्वाल्पर्धिका नैरयिकाः कृष्णलेश्याः, सर्वमहर्दिका नैरयिकाः कापोतलेश्याः, एतेषां खलु भदन्त ! तिर्यग्योनिकानो कृप्णलेश्यानां यावत् शुक्ललेश्यानां च कतरे कतरेभ्योऽल्पद्धिका वा, पद्मलेश्यावाले महर्षिक हैं (पम्हलेस्सहिंतो सुक्कलेस्ला महडिया) पद्मलेश्या वालों से शुक्ललेश्या बाले महर्धिक हैं (सव्वप्पडिया जीवा कण्हलेस्सा) सब से कम ऋद्धि वाले कृष्णलेश्या वाले जीव हैं (सव्व महड्डिया सुकलेस्सा) सबसे महधिक शुक्ललेश्या वाले जीव हैं। ___ (एएसि णं भंते ! नेरइयाणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य) हे भगवन् ! इन कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले नारको में (कयरे कयरेहितो) कौल किससे (अप्पडिया वा महडिया वा ?) अल्प ऋद्धिवाले और महान् ऋद्धि वाले हैं ? (गोयमा ! कण्हलेस्लेहितो नीललेस्सा महडिया) हे गौतम ! कृष्णलेश्या वालों से नीललेश्या वाले महाधिक हैं (नीललेस्ले हितो काउलेहसा महड्रिया) नीललेश्या वालों से कापोतलेश्या वाले महर्धिक है। ___ (सचप्पडिया नेरइया कण्हलेस्सा) सब से अल्प ऋद्धि वाले नारक कृष्णलेश्या वाले (सव्वमहड्रिया नेरइथा काउलेस्ला) सब से महान् ऋद्धि वाले नारक कापोतलेश्या वाले हैं। __ (एएसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य) तनश्यामा मपि छ (तेउलेस्सहिंतो पम्हलेस्सा महड्ढिया) :तनश्यापणासाथी पनवेश्या मधि४ छ (पम्हलेस्से हिंतो सुक्कलेस्सा महडूढिया) पालेश्यावाणामाथी शुसवेश्य॥४॥ मध छ (सव्वप्पडूढिया जीवा कण्हलेस्सा).माथी से छ। ऋद्धिअश्या ७५ (सव्वमहड्ढिया सुक्कलेस्सा) माथी भडधि४ शुसोश्या छे. (एएसिणं भंते ! नेरइयाणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य) हे भगवान् ! मा युलेश्या, नीसवेश्या मने पातोश्यावा ना२मा (कयरे कयरेहिंतो) अy नाथी (अप्पढिया वा महडूढिया वा ?) सद्धिा मन महानद्धिा छ १ (गोयमा ! कण्हलेस्सेहिंतो नीललेस्सा महड्ढिया) गौतम ! लेश्यावापामाथी नासोश्यावा महर्षि छे (नीललेस्सेहिंतो काउलेस्सा महढिया), नledश्यापाथी पातवेश्या भघि छ (सव्वप्पढिया नेरइया कण्हलेस्सा) माथी २६५*द्धिा ना२४ वेश्या छ (सव्वमहः ड्ढिया नेरइया काउलेस्सा) माथी भडान्द्धिवाणा ना२४ ४पातोश्यावा छे. ' (एएसिणं भवे ! तिरिक्खजोणियाणं फाहलेम्साणं लाष सुक्कलेस्साण य) 3 HIqमा मर १९
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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