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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० ११ मनुष्यादि सलेश्याल्पबहुत्वनिरूपणम् १९९ विशेषाधिकाः, कृष्ण टे या विशेषाधिकाः, तेजोलेश्या ज्योतिष्क्यो देव्यः संख्ये यगुणाः, एतेषां खल भदन्त ! भवनवासिनां यावद् वैमानिकानां देवानाञ्च देवीनाञ्च कृष्णलेश्यानां यावत्शुक्ललेश्यानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोका वैमानिका देवाः शुक्ललेश्याः, पदमलेश्या असंख्येयगुणाः, तेजोलेश्या असं. स्येयगुणाः, तेजोलेश्या वैमानिकदेव्यः संख्येषगुणाः, तेजोलेश्या भवनवासिदेवा असंख्येयगुणाः, तेजोलेश्या भवनवासिदेव्यः संख्येयगुणाः, कापोतलेश्या भवनवासिनोऽसंख्येयगुणाः, नीललेल्या विशेषाधिकाः, कृष्णलेश्या विशेषाधिकाः, कापोतलेश्या भवनवासिन्य: (एएलिणं भंते ! भरणासीणं जाव वेमाणियाण देवाणय देवीण य कण्ह. लेस्साणं जाव सुकलेस्लाण) हे भगवन् ! इन कृष्णलेश्यावाले यावत् शुक्ललेश्या वाले भवनवासी यावत् वैमानिक देवों और देवियों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, वहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा) शुक्ललेश्याधाले वैमानिक देव सब से कम हैं (पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा) पद्मलेश्या वाले असंख्यातगुणा हैं (तेउलेस्सा असंखेज्जगुणा) तेजोलेश्यावाले असंख्यात. गुणा हैं (तेउलेक्साओ बेमाणियदेवीओ संखेज्जगुणाओ) तेजोलेश्यावाली वैमानिकदेवियां संख्यातगुणी हैं (तेउलेस्सा भवणवासीदेवा असंखेज्जगुणा) तेजोलेश्यावाले भवनवासी देव असंख्यातगुणा हैं (तेउलेस्साओ भवणवासीदेवीओ संखेज्जगुणाओ) तेजोलेश्यावाली भवनवासिनी देवियां संख्यातगुणा हैं (काउ. लेस्सा भवणवासी असंखेनगुणा) कापोतलेश्यावाले भवनवासी असंख्यातगुणा हैं (नीललेस्सा विलेसाहिया) नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं (कण्हलेस्सा (एएसिणं भंते । भवणवासीणं जाव वेमाणियाणं देवाण य देवीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साणं) में भगवन् । सश्या यावत् शुसीया सनवासी यात् पेमानि: । भने वियोमा (कयरे कयरेहिंतो) नाथी (अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा १) ५६५, , तुक्ष्य अथवा विशेषाषि४ छ ? ' (गोयमा ! सव्वत्थोवा वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा) शुश्यामा वैमानि४ हेव माथी माछा छ (पम्हलेस्सा असखेज्जगुणा) पदमवेश्यावा AAयात छे (तेउलेस्सा अस खेज्जगुणा) तेश्यावा. मसभ्यात छ (तेउलेस्साओ वेमाणियदेवीओ संखेज्जगुणाओ) तेश्यावाणी मानि क्यिो सध्यातरी छे (वेउलेस्सा भवणवासी देवा अस खेज्जगुणा) तेश्यावा मनवासी हे असभ्यात छ (तेउलेस्साओ भवणवासी देवीओ सखेज्जगुणाओ) तोश्यावाणी नवनवासीनी वियो सन्यात छ (काउलेस्सा भवनवासी असंखेज्जगुणा) पातोश्यावा अनवासी सस'च्यात! छे (नीललेस्सा विसेसाहिया) नासवेश्या विशेषाधि छे (कण्हलेस्सा विसेसाहिया) प्युलेश्या प्र० १७
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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