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________________ १२७ trafant arer पद १७ सू० ११ मनुष्यादि सलैश्याल्पबहुत्वनिरूपणम् तुल्या वा विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्वोका वैमानिका देवाः शुक्ललेश्याः, पद्मलेश्या असंख्येयगुणाः, तेजोलेश्या असंख्येयगुणाः, तेजोलेश्या भवनवासि देवा असंख्येयगुंणाः, कापोतलेश्या असंख्येयगुणाः, नीललेश्या विशेषाधिकाः, कृष्णलेश्या विशेषाधिकाः, तेजोलेश्या वानव्यन्तरा देवा असंख्येयगुणाः, कापोतलेश्या असंख्येयगुणाः, नीललेश्या विशेपाधिकाः, कृष्णलेश्या विशेषाधिकाः, तेजोलेश्या ज्योतिष्का देवाः संख्येयगुणाः, एतेषां खलु भदन्त ! भवनवासिनीनां वानव्यन्तरीणां ज्योतिष्कीणां वैमानिकीनाञ्च कृष्णलेश्यानां शुक्लेश्या वालों में (यरे कयरेर्हितो अप्पा वा बहुया तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा वैमाणिया देवा सुकलेस्सा) हे गौतम ! सब से कम वैमानिकदेव शुक्ललेश्यावाले (पम्हस्सा असंखेज्जगुणा) पद्म श्यावाले असंख्यातगुणा हैं (तेउलेस्सा असंखेज्जगुणा) तेजोलेश्यावाले असंख्यातगुणा हैं । (तेज्लेस्सा भवणवासीदेवा असंखेज्जगुणा) तेजो लेयाबाले भवनवासीदेव असंख्यातगुणा हैं, (काउलेस्सा असंखेज्जगुणा) कापोतलेइया वाले असंख्यातगुणा है (नीललेस्सा विसेसाहिया) नील लेश्यावाले विशेषाधिक हैं ( कण्हलेस्सा विसेसाहिया) कृष्ण- लेष्णश्यावाले विशेषाधिक हैं (तेउलेस्सा वाणसंतरा देवा असंखेज्जगुणा ) तेजोलेश्यावाले वानव्यन्तर देव असंख्यातगुणा (काउलेस्सा असंखेज्जगुणा ) कापोत लेश्यावाले असंख्यातगुणा (नीललेस्सा बिसेसाहिया) नीललेश्या वाले विशेषाधिक (कण्हलेस्सा विसेसाहिया ) कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक (तेउलेस्सा जोइसिया देवा संखेज्जागुणा) तेजोलेश्यावाले ज्योतिष्कदेव संख्यातगुणा अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) आए अनाथी सहय, घाणा, तुम्य अथवा विशेषाधिक छे १) (गोयमा ! सव्वत्थोत्रा वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा) हे गौतम! मधाथी थेोछा वैभानिष्ठ देव शुरुसलेश्यावाणा (पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा ) पद्मद्वेश्यावाणा असभ्याता छे (तेउलेस्सा असरखेज्जगुणा) तेनेयेश्यावाणा असंख्यात छे (तेउलेस्सा भत्रणवासी देवा अस खेज्जगुणा) तेलेसेश्यावाणा भवनवासी देव असभ्याना छे (काउलेस्सा असंखेज्जगुणा ) अपोतसेश्याव.जा असण्यातगाया छे. (नीलले सा विसे साहिया) नीससेश्यावाणा विशेषाधि४ छे (कण्हलेस्सा विसेसाहिया) ष्णुसेश्यावाणा विशेषाधि ( तेउलेस्सा वाणमंतरा देवा असंखेज्जगुणा) तेनेोश्यात्रामा वानव्यांतर देव असंख्यात गाया छे. (काउलेस्सा अस - खेज्जगुणा) छापेोलेश्यावाणा असंख्यातगणा (नीललेस्सा विसेसाहिया) नीससेश्यावाणा विशेषाधि४ छे. (कण्इलेस्सा विसेसाहिया दृष्णुलेथ्यावाणा विशेषाधि४ छे. (तेउलेस्सा जोइसिया देवा सौंखेज्जगुणा) तेलेलेश्यादाणा ज्योतिष्ठ द्वेव सभ्यातगणा छे. (एएखिणं भंते ! भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं य कण्हलेस्सार्ण जाव
SR No.009341
Book TitlePragnapanasutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size62 MB
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