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________________ प्रज्ञापनासूत्रे सौधर्मादीनि यावत् अनुत्तरविमानानि, एवञ्चैव ईषत्प्राग्भारापि एवञ्चैव लोकोऽपि, एवञ्चैव अलोकोऽपि ॥ सू० १॥ टीका-नवमपदे प्राणिनां योनिप्ररूपणं कृतं सम्प्रति दशमे पदे रत्नप्रभाद्युत्पातक्षेत्रस्य चरमाचरमविभागप्ररूपणं कर्तुमाह-'कइणं भंते ! पुढवीओ पण्णताओ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कति-कियत्यः, पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः प्ररूपिताः सन्ति ? भगवान् आह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'अट्ठ पुढवीओ पण्णत्ताओ' अष्टौ पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः, तं जहा-रयणप्पभा, सकरप्पभा, वालुयप्पभा, पंकप्पमा, धूमप्पभा, तमप्पमा तमतमप्पभा, ईसीपब्भारा' तद्यथा-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा, ईपत्प्रारभारा, तत्ररत्नप्रभादि सप्तपृथिव्यः प्रागेव प्ररूपिताः प्रसिद्धाश्च, ईपत्प्राग्भारा तु पञ्चचत्वारिंशद्योजनअचरमंतपदेसा य) चरमान्तप्रदेशा और अचरमान्तप्रदेशा है (एवं जाच अहे सत्तमा पुढवी) इसी प्रकार नीचे की सातवीं पृथ्वी तक कहना (सोहम्माई जाव अणुत्तरविमाणाणं) सौधर्म से लेकर अनुत्तरविमानों तक (एवं चेव ईसीपभास वि) इसी प्रकार ईषत्प्रारभार पृथिवी भी (एवं चेव लोगे वि) इसी प्रकार लोक भी (एवं चेच अलोगे वि) इसी प्रकार अलोक भी कहना। टीकाथै-नवम पद में प्राणियां की योनियों की प्ररूपणा की गई है. इस दशम पद में रत्नप्रभा आदि उत्पत्तिक्षेत्रों के चरम अचरम विभाग की प्ररूपणा की जाती है। श्रीगौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! पृथिवियां कितनी कही हैं ? भगवान्-हे गौतम ! पृथिवियां आठ कही गई हैं, उनके नाम ये हैं-१ रत्नप्रभा २ शर्कराप्रभा ३ वालुकाप्रभा ४ पंकप्रभा ५ धूमप्रभा ६ तमःप्रभा ७ तमस्तमाप्रभा और ८ ईषत्प्रारभार पृथिवी । इनमें से रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियों का निरूपण पहले किया जा चुका हैं और वे प्रसिद्ध भी हैं । पैंतालीसलाख योजन लम्बी छ (एवं जाव अहे सत्तमा पुढवी) मे प्रभारी नीयनी सातभा पृथ्वी सुधी हे (सोहम्माई जाव अणुत्तर विमाणाणं) सोधभथी मारली२ अनुत्तर विमान सुधी (एवं चेव ईसी पभारा वि) से प्रारे पत्प्रादार पृथ्वी पY (एवं चेव लोगे वि) से प्रायो पा (एवं चेव अलोगे वि) से सारे ३४ ५५ ४३।। ટીકાર્થ-નવમ પદમાં પ્રાણિની પેનિની પ્રરૂપણ કરાઈ છે. આ દશમપદમાં રત્નપ્રભા આદિ ઉત્પત્તિ ક્ષેત્રોના ચરમ અચરમ વિભાગની પ્રરૂપણ કરાય છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે –પૃથ્વી કેટલી કહી છે? श्री जोतभस्वाभी-3 गीतम! पृथिवीयो 205 ४ा छ, तमना नाम ॥ छ :-(१) २त्नप्रभा (२) ४२॥ प्रमा, (3) पाबुआमा, (४) ५४मला (५) धूमप्रभा (6) तम:प्रमा (૭) તમસ્તમ પ્રભા અને (૮) ઈષ~ાભાર પૃથ્વી. તેમાંથી રત્નપ્રભા આદિ સાત પૃથિ
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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