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________________ ९०६ प्रज्ञापनास्त्रे गतिः, जम्बूद्वीपे द्वीपे निपधनीलबद वर्षधरपर्वते सपक्षं सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, जम्बूद्वीपे द्वीपे पूर्वविदेहापर विदेहे सपक्षं सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, जम्बूद्वीपे द्वीपे देवकुरूत्तरकुरौ सपक्षं सप्रविदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरपर्वतस्य सपक्ष सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, लवणे समुद्र सपक्षं सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपात गतिः, धातंकी खण्डे द्वीपे पूर्वार्द्ध पश्चिमार्द्धमन्दरपर्वतस्य सपक्षं संप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, कालोदसमुद्रस्य सपक्षं सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, पुष्करवरद्वीपार्द्धपूर्वार्द्ध भरतैरवित वर्पस्य सपक्ष प्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, एवं यावत् पुष्करवरद्वीपार्द्धपश्चिमार्द्धमन्दरद्वीप नामक द्वीप में गंधापाती, माल्यवन्त पर्वन तथा वृत्तवैताढ्य के सब दिशा में और संघ विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है (जंबुद्दीवे दीवे णिसहणीलवंत वास हरपव्वतसपर्विवसपडिदिसिं सिद्धवखेत्तोववायगती) जम्बूद्वीप नामक द्वीप में निषेध और नीलवन्त नामक वर्षधर पर्वत के सब दिशा - विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है (जंबुद्दीवे दीवे पुच्चविदेहावरविदेहसपक्खि सपंडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती) जम्बूदीप नामक द्वीप में पूर्व विदेह और अपरविदेह के सभी दिशाओं - विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है (जंबुद्दीचे दीवे देवकुरुउत्तरकुरुसपर्विखं 'सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती) जम्बूद्वीप नामक द्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु में सब दिशा-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है (जंबुद्दीचे दीवे मंदरपव्वयस्स सपर्किख सपडिदिसि सिद्धखे त्तोव वाय गती) जंबूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत में संब दिशा-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोंपपातगति है (लवणे समुद्दे सपख सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती) लवण समुद्र में सर्व दिशा - विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है (धायइसंडे दीवे पुरस्थिमद्ध'वंत पब्चय वेढय सपक्खं सपडिदिनि सिद्धखेत्तोववायगती) ४भ्ीय नाम "द्वीयभां ગ ધાપાતી, માર્ભવન્ત પર્યંત વૃત્તવૈતાઢયની બધી દિશાઓમાં બધી વિદિશાઓમાં સિદ્ધ क्षेत्रपपातजति छे (जंबूदीवे दीवे णिसहनीलवंतवासहर पव्वत पक्खिं संपडिदसिं" सिद्धखेत्तोववायगतो) ?म्भूद्वीप नामक द्वीपमा निषेध गर्ने नीसर्वन्त नाम' वर्षधर पर्वर्तनी 'अधी दिशा-विद्दिशायामां सिद्धक्षेत्रोपयांत गति छे (जम्बूद्दीवे दीवे पुव्त्रविदेहावरं विदेह सपक्खिं सपडिदिसि 'सिद्ध खेत्तोववायगती ) ० स्मुद्रीय नाम द्वीपमा पूर्व विहेड अने अपर विहेडनी मधी द्विशामा - विद्विशाओमां सिद्धक्षेत्रीययातगति छे (जम्बुद्दीवे दीवे देवकुरु - उत्तर कुरु सपक्स्निं सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती) ४भ्यूद्धीय नाम द्वीपमा देवड्डई भने उत्तर '३मां षधी दिशाओ - विडिशायामां सिद्धक्षेत्रापपातगति छे ( जम्बुद्दीवे दीवे मंदर पव्त्रस्स सपक्खिं सपीडदिसि सिद्धखेत्तोववायगती) ४भ्यूद्रीय नाम द्वीपभां मन्दरं पर्वतां अधी દિશા–વિદિશાઓમાં સિદ્ધક્ષેત્રપપાતગતિ છે ;11 } 1 (लवणसमुद्दे संपक्खं स॒पडिदिवि सिद्धखेत्तोवंवायगती) सवयु समुद्रमी मधी हिशी विद्विशं शोभां सिद्धक्षेत्रोपयातंगति (धांयइ खंडे दीवे पुरत्थिमद्धं पच्छिमद्धमंदरंप व्वय
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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