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________________ , प्रमेयबोधिनी टोका पद १६ सू० ६ गतिप्रपातनिरूपणम् ઘર F 'भदन्त ! सत्यमनः प्रयोगगति यचित् कार्मणशरीर कायप्रयोगगतिः ? गौतम ! जीवाः सर्वेऽपि तावद् भवेयुः सत्यमन्नः प्रयोगगतयोऽपि, एवं तच्चैव पूर्ववणितं भणितव्यम्, भङ्गास्तथैव यावद् वैमानिकानाम्, तत् एषा प्रयोगगतिः १, तत् का सा ततगतिः ? यः खलु यं ग्राम वा यावत् सनिवेशं वा संस्थितः असंप्राप्तः अन्तगपये वर्तते, तत् सा ततगतिः २, अथ का सा बन्धनच्छेदन गतिः ? बन्धनच्छेदनगतिः - जोवो वा शरीरात्, शरीरं वा जीवात्, तत् सा बन्धगगती) सत्यमनप्रयोगगति ( एवं ) इम प्रकार ( उवउज्जिऊण) उपयोग करके (जस्स जतिविहा) जिसकी जित ने प्रकार की (तस्स ततिविहा) उसकी उतने प्रकार की (भाणिवा ) कहनी चाहिए (जाब) वैमाणियाणं) यावत् वैमानिकों, तक । 1 (जीवाणं भंते ! सच्चगणप्पओगगनी जाव कम्मन सरीरकायप्पओगगती) हे भगवन् ! जीवों की सत्यवनप्रयोगगति यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगति (कविहा पण्णत्ता ? ) कितनी तरह की कही है ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जीवा सव्वे वि ताव होज्ज सच्चमणप्पओगगती वि) जीव सभी होते हैं सत्यमनप्रयोग गति वाले भी ( एवं तं चैव ) इस प्रकार वही (पुञ्चवण्णितं भणिय) पूर्ववर्णित कहना चाहिए (भंगा तहेव ) भंग उसी प्रकार (जाव वैमाणियाणं) यावत् मानकों के (से तं पओगगती) यह प्रयोगगति हुई । (से किं तं तती ?) ततगनि क्या है ? (ततगती) ततगति (जेणं) जिसके द्वारा (गामं वा जाव सन्निवेसं वा संपट्टिते) ग्राम यावत् सन्निवेश को रवाना हुआ (असंपत्ते) पहुंचा नहीं (अंतरापहे ) बीच रास्ते में (वहति) वर्त्त रहा है (सेतं ततगती) वह तलगती है । (से किं तं बंधणछेदणगती ?) बन्धनछेद नगति क्या है ? (जीवो वा सरीराओ) ये रीते (ज्वउज्जिऊण) प्रयोग शरीने (जस्स जति विहा) बेनी भेटला अारनी ( तस्स तति बिहा) तेभनी तेटला अभरनी (भाणियच्या) हेवी लेये (जाब वेमाणियाणं ) यावत् વૈમાનિકા સુધી 4 '=' (जीवाणं भंते । सच्चमणप्पओगगती जाव कम्मसरीरकायप्पओगगती) हे भगवन् ! भवानी सत्यभन प्रयोगगति यावत् अर्भ शरीराय प्रयोगगति (कइविहा पणत्ता ? ) डेंटला प्राश्नी उही हे ? (गोयमा !) डे गीतभ ! ( जीवा सव्वे वि ताव हो सच्च म गप्प ओगगती वि) व गधा होय छे, सत्यभन प्रयोगगतिवाजा पशु (एवं तं चैव) मे अरे ते४ (पुव्ववणित भाणियां) पूर्व वर्णित 'हेवु ले मे (भंगा तद्देव) लगते ५४ारे (जाव वैमाणियाणं) यावत् वैभानिना (से तं पओगगती) या प्रयोगगति थ h (से किं तं ततगति ?) तत गति शु छे ? (ततगती) तंतगती (जे णं) भेो। (गाम वा जाव संनिवेसं वा संपट्ठिते) ग्राम तर यावत् सन्निवेशनी तर श्वानाथया (असंपत्ते) त्यां पहग्या नही (अंतरापहे ) वरचे तामां (वट्ठति) रहे है, (सेतं ततगती) ते तंतगति है, ० ११३ 1 44
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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