SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 736
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रोपनाम चा, ना बा, संख्येयानि वा, असंइयानि वा, अनन्तानि वा, एवं चारिन्द्रियवेऽपि, नवरं पुरस्कृतानि चत्वारि वा, अष्टौ वा, द्वादश वा, संख्यानि वा, असंख्येयानि पा, अनन्तानि वा, एवम् एते चैव गमा श्चत्वारो ज्ञाराव्याः ये चैव द्रव्येन्द्रियेपु, नवरं तृतीयामे ज्ञातव्यानि यस्य यागन्ति इन्द्रियाणि, तानि पुरस्कृतेषु ज्ञातव्यानि, चतुर्थयो या द्रव्येन्द्रियाणि, यावत् सर्वार्थसिद्ध कदेवानां सर्वार्थसिद्धदेवत्वे कियन्ति भावन्द्रियाणि अतीतानि? न सन्ति, वद्धानि ? संख्येयानि, पुरस्कृतानि ? न सन्ति । इन्द्रियपदं समाप्तम् । टीका-अथ भावेन्द्रियाणि प्ररूपयितुमाह-कह णं भंते ! भाविदिया पप्णता?' हे भदन्त ! कति सलु भावेन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि ? 'गोयमा !' हे गौतम ! 'पंच भाविदिया पण्णत्ता' पञ्च भावेन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि, 'तं जहा-सोइदिए जाय फासिदिए' तद्यथा-श्रोत्रे (तिगि वा, छ वा, णव वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जावा, अगंता वा) तीन, छह, नौ, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त (एवं चरिदियते वि) इसी प्रकार चौइन्द्रियपने भी (नवरं) विशेष (पुरेक्खबा) भावी (चत्तारि वा, अबा, पारस घा, संखेज्जा वा, असंखेजा वा, अपंता वा) चार, आठ, चारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त (एवं एए चेव गमा) इस प्रकार वही गम (चत्तारि) चार (जाणेयव्वा) जानने चाहिए (जेचेव दधिदिएलु) जो द्रव्येन्द्रियां में (नवरं) विशेष (तइगमे जाणियव्या) तीसरे गममें जानना चाहिए (जस्सजई इंदिया) जिसकी जितनी इन्द्रियां (ते) दे (पुरेक्खडेसु) मादी इन्द्रियों में (मुणेयका) जानना चाहिए (चउत्थगमे).चौये गम में (जहेव दधिदिया) जैसे द्रव्येन्द्रियां (जाव) यावत् (सव्यसिद्धगदेवाणं) सर्वार्थसिद्धक देवों की। _ (सघट्टसिद्धगदेवत्त) सर्वार्थसिद्धकदेवपने (केवइया भाविदिया अतीता ?) 40 से प्र४२ (नवर) विश (पुरेक्खडा) मी (तिणि वा, छ वा णव वा, संखेजा वा, असंखज्जा वा, अणंवा वा) ए, ७, न, सभ्यात, अस ज्यात, सपा मनन्त (एवं चउरि दियत्ते वि) मे४ आरे यतुन्द्रिय पyामा १५ (नवरं) pिar (पुरेक्खडा) सावी (चत्तारि वा, अट्ट वा, पोरस वा, संसजा दा, असंसज्जा वा, अगंता वा) या२, भा, २, सभ्यात, असभ्यात, अशा अनन्त (एवं एए चेत्रगमा) ये रे या गम पाय (चत्तारि) या२ (जाणेयव्वा) तानसे (जे चेव दवि दिएस) रे द्रव्येन्द्रियोमा (नवर) विशेष (तइयगमे जाणियव्वा) ते तृतीयममा लाये (जस्स जइ इंदिया) नीरक्षी इन्द्रियो (a) तसा (पुरेक्खडेसु) भावी छन्द्रियोमा (मुणेयवा) लाने (चउत्थगमे) यथा मां (जहेव दवि दिए) रेभ द्रव्येन्द्रियो (जाव) यावत् (सव्वट्ठसिद्धगदेवाण) સર્વાર્થસિદ્ધક દેવેની . (सव्वद्वसिद्धगदेवत्ते) साथ सिद्ध ४५२ (केवड्या भावि दिया अतीता ?) ४८वी
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy