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________________ प्रयापनास्त्रे असुरकुमारस्य, नवरस्-मनुष्यस्य पुरस्कृतानि कस्यचित् सन्ति, कस्यचिन्न सन्ति, इति शुणितव्यम्, सनत्कुमारस्य यावद् गैवेयकस्य यथा नैरयिकस्य, विजय जयन्त जयन्तापराजित देवस्यातीतानि अनन्तानि, बद्धानि पञ्च; पुरस्कृतानि पञ्च चा, दश वा, पञ्चदश वा, __ संख्येयानि वा, सर्वार्थसिद्धकदेवस्य अतीतानि अनन्तानि, बद्धानि पश्च कियन्ति पुरस्कृतानि? एंञ्च, नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्ति भावेन्द्रियाणि अतीतानि ? गौतम ! अनन्तानि; कियन्ति बद्धानि ? असंख्येयानि, कियन्ति पुरस्कृतानि ? अनन्तानि, एवं यथा द्रव्येन्द्रियेषु पृथक्त्वेनणियस्स.जाव ईलाणस्स जहा अत्तुरकुमारस्त) पंचेन्द्रिय तिर्यच से लेकर ईशान देव तक असुरकुमार के समान (णवरं) विशेष (मणूमस्स पुरेक्खडा कस्सइ आत्थि, कस्सइ नस्थित्ति भाणियन्वं) मनुष्य की भावी इन्द्रियां किसी की होती है शिसीको नहीं ऐसा शहना चाहिए (सर्णकुमार जाव गेवेज्जागस्स जहा नेरइयस्स) सनत्कुमार यावतू ग्रैवेयकदेव को नारक के समान (विजय-वेजयंर-जयंत-अपरा जितदेवरस अतीता अणंता,) विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजितदेव की अतीत अनंत (बल्लगा पंच) बद्ध पांच (पुरेक्खडा पंच चा, दस वा, पण्णरस वा संखेज्जा वा) भावी पांच, अथवा दश, अथवा पन्द्रह अथवा संख्यात। _ (सम्वसिद्धदेवस्स) सर्वार्थसिद्धकदेव की (अतीता अगंता) अतीत अनन्त (बद्धेल्लगा पंच) बद्ध पांच (केवड्या पुरेक्खडा ?) भावी कितनी ? (पंच) पांच ___ (नेरझ्याणं भंते केवइया भाविदिया अतीता?) हे भगवन् ! नारकों की अतीत भावेन्द्रियां कितनी ? (गोयमा! अर्णता) हे गौतम! अनन्त हैं (केवइया बल्लिगा?) बद्ध कितनी? (असंखेज्जा) असंख्यात (केवइया पुरेकावडा) भावी कितनी? (अणंता) अनन्त (एवं जहा) इस प्रकार जैसे (दविदिएसु) द्रव्येन्द्रियों में (पोहत्तंग) पृथसनात (पचि दियतिरिक्खजोणियस्स जाव ईसाणस जहा असरकुमारस) पयन्द्रितय - थी ने शन व सुधी मसुरशुभारना समान (णवर) विशेष (मणूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्यि त्ति भाणियव्यं मनुष्य अपनी भावीन्द्रयो नी डाय छ, होनी नही सेम डेवु नये (सणंकुमार जाव गेवेज्जगस्स जहा नेरइयस्स) सनभा२ यावत् अवेय४३वनी ना२ना समान (विजय वेजयन्त-जयंत-अपराजित देवस्स अतीता अर्णता) विजय, वैश्यन्त, न्यन्त-अनित पनी मतीत मनन्त (बद्धेल्लगा पंच) पर पाय (पुरेक्खडा पंच वा, दस वा, पण्णरस वा, संखेज्जा वा) मापी पांय अथवा ४२ अथवा પંદર- અથવા સંખ્યાત - (सव्वद्ध सिद्धगदेवरस) साथ सिद्ध हेवनी (अतीता अणता) अतीत मनन्त (बद्धल्लगा पंच) मा पाय (केवइया पुरेक्खडा) मापी ४८सी ? (पंच) पांय . (नेरइयाणं भंते ! केवइया भाविदिया अतीता?) भगवन् ! नारीनी सतीत माके न्द्रियो की ? (गोयमा! अणंता) गौतम! मनन्त (केवइया बद्धेल्लगा) मद्ध टसी ? (असंखेज्जा) मण्यात (केवइया पुरेक्खडा) मामी seal ? (अणंता) मनन्त (एवं जहा
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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