SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 673
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयवोधिनी टीका पद १५ सू. ७ प्रतिविम्ववर्णनम्र छाया-आदर्श प्रेक्षमाणो मनुप्य आदर्श प्रेक्षते, आत्मानं प्रेक्षते, प्रतिभागं प्रेक्षते ? गोयया ! आदर्श प्रेक्षते, नो आत्मानं प्रेक्षते, प्रतिभागं प्रेक्षते, एवम् एतेन अभिलापेन असि, मणि, दुग्धं पानीयं तैलं फाणितं वसाम् ॥सू० ७॥ - टोका-अथेन्द्रियप्रस्तावात्तद् विशेषग्राह्य विम्बवक्तव्यतां प्ररूपयितुम् त्रयोदशमादर्शद्वारमाह-'अदाय पेहमाणे मणूसे अदाय पेहइ, अत्ताणं पेहइ, पलिभागं पेहइ ?' हे भदन्त ! आदर्श-दर्पणं प्रेक्षमाणः-पश्यन् मनुष्यः किम् आदर्श प्रेक्षते ? किम्वा आत्मानं-शरीरं प्रेक्षने ? किम्वा-प्रतिभागं-प्रतिविम्वं प्रेक्षते ! भगवानाह-'गोरमा !' हे गौतम ! 'भदाय पेहइ, लो अत्ताणं पेहइ, पलिमागं पेहइ' आदर्श प्रेक्षमाणो मनुष्य आदर्श प्रेक्षते, आदर्शस्य रपष्टरूपस्य यथावस्थितस्यैव तत्र प्रत्यक्ष एवोपलरभाव, किन्तु नो आत्मानं-वशरीरं तत्र प्रेक्षते आदर्श या प्रतिविम्ब को देखता है ? (गोथमा ! अहाथं पेहइ) हे गौतम ! दर्पण को देखता है (नो अप्पाणं पेहइ) अपने आपको नहीं देखता (पलिभागं पेहइ) प्रतिविम्ब को देखता है (एवं) इसी प्रकार (एतेणं अभिलावेर्ण) इस अभिलास से (असिं) तलवार को (मणि) मणि को (दुद्ध) दूध को (पाणं) पानी को (तेल्लं) तेल को (फाणियं) गुड़ को (वसं) ची को।। टीकार्थ-इन्द्रियों का प्रकरण चालू है। इसी प्रकरण में इन्द्रियग्रहित प्रतिबिम्ब की वक्तव्यता की प्ररूपणा करते हैं गौतलस्वामी प्रश्न करते हैं-भगवन् ! मनुष्य जब दर्पण को देखता है तो वास्तव में वह क्या देखता है ? क्या दर्पण को देखता है ? क्या अपने को अर्थात अपने शरीर को देखता है ? अथवा प्रतिबिम्ब को देखता है? भगवान हे गौतम ! मनुष्य जब दर्पण को देखता है तब वह दर्पण को देखता है. क्योंकि दर्पण यथावस्थित प्रत्यक्ष ही स्पष्ट रूप से देखने में आता आदयं पेहइ) 3 गीतमा पन हेमे छे (नो अप्पणिं पेहइ) पाते पाताने नथी तोप भागं पेहइ) प्रतिविमन हेमे छ (एवं) --मे ॥२ (एतेणं अभिलावेणं) मा प्रमाणे मतसाथी (असिं) तसवारने (मणि) भायने (दुद्धं) इंधने (पाणं) पाणीन (तेल्लं) तेसने (फणियं) गोपन (वसं) यमान ટીકાઈ–ઈ દ્રિનું પ્રકરણ ચાલુ છે. આ પ્રકરણમાં ઈન્દ્રિય ગ્રાહ્ય પ્રતિબિમ્બની વક્તવ્યતાની પ્રરૂપણ કરે છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે કે ભગવન્! મનુષ્ય જ્યારે દર્પણને જોવે છે તે વાસ્તવમાં શું જોવે છે? શું દર્પણને દેખે છે? શું પોતાને અર્થાત્ પોતાના શરીરને દેખે છે? અથવા પ્રતિબિમ્બને દેખે છે ? શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ! મનુષ્ય જ્યારે દર્પણને જોવે છે ત્યારે તે દર્પણને જોવે છે, કેમકે દર્પણ જ યથાવસ્થિત પ્રત્યક્ષ સ્પષ્ટ રૂપે જોવામાં આવે છે. પણ તે માણસ પિતાને
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy