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________________ .६४८ प्रज्ञप्ताः, तबधा-मायिमिथ्याप्टशुपपन्नकाच प्रमायिसम्यग्दृष्टयुपपनकाय, तर रालु ये ते मायिमिथ्यादृप्युपपनकास्ते - खलु न जानन्ति न पश्यन्ति न आहरन्ति, तत्र खलु ये ते अमायिसम्यग्दृष्टयुपपन्नकास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-अनन्नरोपपत्रकान परम्परोपपमकाच, तत्र खलु ये ते अनन्तरोपपन्नकास्ते खलु न जानन्ति, न पश्यन्ति, आदरन्ति, तर खल ये ते परम्परोपपन्नकास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तथा पर्याप्तकाश्य, अपर्याप्तकाच, तत्र सल्लु ये ते अपर्याप्तकास्ते खलु न जानन्ति न पश्यन्ति न आहरन्ति, तत्र खल्लु ये ते पर्याप्तकास्ते हे भगवन् ! वैमानिक उन निर्जरा पुद्गलों को क्या जानते-देखते और आहार करते हैं ? (जहा मणूसा) मनुष्यों के समान (णवरं) विशेष (वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता) वैमानिक दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (माइ मिच्छदिति उववण्णगा य अमाइ सम्मद्दिति उवषण्णगा य) मायी मिथ्यादृष्टि उत्पन्न और अमायिलम्यग्दृष्टि उत्पन्न (तत्थ पं जे ते माड मिच्छद्दिष्टि उववण्णगा) उनमें जो मायी मिथ्यादृष्टि उत्पन्न होते हैं (ते णं न जाणंति, न पासंति) ले नहीं जानते हैं, नहीं, देखते हैं (आहारेति) किन्तु आहार करते हैं (तस्य णं जे ते अमाइ सम्मछिट्टि उववण्णगा) उनमें जो अमायी सम्यग्दृष्टि उत्पन्न हैं (ते दुविहा पण्णत्ता) वे दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (अणंतरोब. वण्णगा य परंपरोक्षपणगा य) अनन्तर उत्पन्न और परम्परा-उत्पन्न (तत्थ गं जे ते अणंतरोववण्णगा) उनमें जो 'अनन्तरोपपन्न हैं (ते गं न जाणंति, न पासंति, आहारेति)वे नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं, और आहार करते हैं (तस्थ -णं जे ते परंपरोदवण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता) उनमें जो परंपरोपपन्न हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं ( जहा), वे इस प्रकार (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) वैमानित नि शुगर शुल-हेथे भने माहा२ ४३ छ। (जहा मणूसा) मा - सोनी समान (णवरं) विशेष (वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता) वैमानि मे १२i Bud (तं जहा) ते २॥ शत (साइमिच्छट्ठिी उबवण्णगा य अमायो सम्मठिी उबवण. गाय) भायी. मिथ्याटि उत्पन्न भने समायी सभ्यष्टि पन (तत्य णं जे ते माइ मिच्छदिदि उववण्णगा) तमामा रे भायी मिथ्याटि -64-1-छे (तणं न जाणंति न पासंति) तो आता नथी तभन हेमता ५ नथी (आहारे ति) ५२न्तु माहा२ ४२ छे - (तत्य णं जे ते अमायी मिच्छद्दिढि- उववण्णगा) तेमामा र ममाथी भिस्याट उत्पन्न छ (ते दुविहा. पण्णत्तो) तेसा मे ना ४ा छ- (तं जहा) तेमा मा प्ररे (अणंतरोव. वण्णगा य परंपरोवदण्णगा य) मनन्त पन्न भने ५२५२१-उत्पन्न (तत्य णं जे ते अगत. रोववष्णगा) तमामा रे अनन्त३।५५न्न छ (ते णं न जाणति-न पासंति,, आहारे ति) तेयो नथी, लता, नथी हेमता, भाडा२.४रे.छे (तत्य णं जे ते परंपरोक्क्ण्ण गा से दुविहा पण्णत्ता) तयामा २ ५२५२१५५न छे, - तेसा मे प्रारना ४ा छे (तं जहा) तेसो मा प्रकारे
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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