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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० ६ अनगारविषयकवर्णनम् न जाणंति, न. पासंति, न आहारैति, तत्थ णं जे ते अमाइ सम्मदिट्टी उवष्पागा ते दुविहा पाणता,तं जहा अणंतववपणगा यापरंपरा वर्षणगा ये, तत्थ णजे ते अणंतरोवण्णगाते ण न जाणंति न पासति आहारेति, तत्थ णं जे ते परंपरोववण्णा ते दुविहा परणता, तं जहा-पजत्तमा य अपज्जत्तगा य, तत्थ गांजे ते अपञ्चत्तमा ते शं न, जाणंति न पासंति आहारे ति, तत्थ पंजे,ते, पजत्नगा, ते दुविहा पत्ता तं जहा-उवउता अ.अणुवउत्ता:य, लत्थ (जे ते अणुवउतातिगाणं त्र) जाणंति, न पासंति, आहारे ति, तत्थ ण जे ते उवउत्ता ते ण जाणति १ ha. SHEESE(ii व वच्चई अस्थगडयाजाणात. जाव अत्थेगइया आहारेति ॥सू०.६] (Fri) in (info) छाया-अनगारम्यः खलु भदन्त ! अवितात्मनो मारणान्तिकसमुदधातेन समवहतस्यास चरमा निर्जरा पुद्गलाः, सूक्ष्माः खलुते पुद्गला प्राप्ताः श्रमणायुष्मन:।। सर्व लोकमपिये मलते अवगाव खल्ल तिष्ठन्ति ? इन्त, गौतम अनगारस्य भावितात्मनो मारणान्तिक्रसमुद् शब्दार्थ-(अणगारस्सण-भते भावियप्पणी-मारणतिर E-SETU मुरघाएणसमा PITIVE 5( 18.15A NICIANE 102 ) यस्स) भावितात्मा एवं मारणान्तिक समुद्घात से समबहत अनगार के जे चरमा णिज्जरा पोग्गला) जो चरम निर्जरा, पुद्गल है (सहमा णं ते पोरगला पण्णता)-वे-पुदंगल' सूक्ष्म कहे गए हैं ? (समणाउसो) आयमन श्रमण (सन्ध लोग पि य ) सम्पूर्ण लोक को (ऑगोहित्ता ण चिति) अवगाहन करके रहते हैं ? (हंता, गोयमा !) हां, गौतम । (अणगाररस भावियपणों मारतिय समुग्याएणं समोहयस्स) भावितात्मा एवं मारणान्तिक समुद्रात से समवहत 7) , : {, b f. I ) | • JRATPURI HिE 'पतंत्र्यत - (11) 1311 .!! ) (28 \ -(अणंगारस्स ण भते ! भावियर्यापणो' 'मारणतियसमुग्धारण समोहयस मावि तामसभा भारत"समुधातथी सभात मागीना रजे"घरमाणिज्जरा पागली) PA निi-Fi (संहमाण ते पागला पणत्ताने ते"हम Baid (समाउसो) भायुभन् श्रभा (सच्चे लोग पि य ण) वेन (ओगाहिता मचिति नशन छ (हन्त गोया)" गौतम (अर्णगारस भावियापणो मारगतिय(मुग्धारणं समोहयस्स) लविताभ'तम भाgids संधतिया समवस्तीमा Mini 13 it. FREE
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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