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________________ ५८३ प्रमेयोधिनी टीका पद १५ सू० १ इन्द्रियस्वरूप निरूपणम् खलु भदन्त ! कति प्रदेशिकं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! असंख्येयप्रदेशिकं प्रज्ञप्तम्, यावत् स्पर्शेन्द्रियम् ॥ सू० १ ॥ टीका - अथेन्द्रियाणां संस्थानादिकं प्ररूपयितुं संस्थानहारमाह - ' कइ णं भंते ! इंदिया पण्णत्ता ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! कति खल इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि, 'गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता' हे गौतम ! पञ्चेन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि, 'तं जहा- सोईदिए, चक्खिदिए, वाणिदिए, जिभिदिए, फार्सिदिए' तद्यथा - श्रोत्रेन्द्रियम् चक्षुरिन्द्रियस् घ्राणेन्द्रियम् जिडेन्द्रियम्, स्पर्शेन्द्रियम्, गौतमः पृच्छति - 'सोईदिए णं भंते कि संठिए पण्णत्ते ?' हे भदन्त ! श्रोत्रेन्द्रियं खलु किं संस्थितम् - किमाकारं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह - 'गोमा !" हे गौतम! 'कलंबुया पुष्कसंठाणसंठिए पण्णत्ते ?' श्रोत्रेन्द्रियं कदम्बपुष्पपुच्छा) स्पर्शेन्द्रिय के विषय में प्रश्न ? (गोयमा ! सरीरप्पमाणमेन्ते पोहणं पण्णत्ते) हे गौतम ! शरीर प्रमाण मात्र पृथु कही है । एवं (सोईदिए णं भंते ! कइ परसिए पण्णत्ते) हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय कितने प्रदेश वाली कही हैं ? (गोयमा ! असंखेज्जपदेसिए पण्णत्ते) हे गौतम! असंख्यात प्रदेशी कहा है ( एवं जाव फार्सिदिए ) इसी प्रकार यावत् स्पर्शेन्द्रिय । टीकार्थ- अब इन्द्रियों के संस्थान आदि की प्ररूपणा करने के लिए सर्वप्रथम संस्थानद्वार कहा जाता है । गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं - हे भगवन् ! इन्द्रियां कितनी कही गई हैं ? भगवान् - हे गौतम! इन्द्रियां पांच कहीं गई हैं, वे इस प्रकार हैं- (१) श्रोत्रेन्द्रिय (२) चक्षुरिन्द्रिय (३) घ्राणेन्द्रिय (४) जिवा इन्द्रिय और (५) स्पर्शेन्द्रिय । गौतमस्वामी - हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार वाली कही हैं ? अर्थात् श्रोत्रेन्द्रिय की आकृति कैसी है ? भगवान् - हे गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय का आकार कदम्ब के पुष्प के समान कहा गया है । (सोइंदिएणं भंते । कइ परखिए पण्णत्ते ?) डे लगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय डेटा प्रदेशवाजी रही छे (गोयमा ! असंखेज्जपएसिंए पण्णत्ते) हे गौतम! असंख्यात अहेशी उडेस छे. (एवं जाव फासि दिए ) से हारे यावत् स्पर्शेन्द्रिय. ટીકાઅે હવે ઇન્દ્રિયાના સસ્થાન આદિની પ્રરૂપણા કરવાને માટેસ પ્રથમ સંસ્થાન દ્વાર મ્હેવાય શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે હે ભગવન ઇન્દ્રિા કેટલી કહેલી છે? શ્રી ભગવાન્ હે ગૌતમ! ઇન્દ્રિયા પાંચ કહેલી છે, તેએ આ પ્રકારે છે(૧) ક્ષેત્રે न्द्रिय (२) यक्षुरिन्द्रिय ( 3 ) प्राशेन्द्रिय ( ४ ) निह्वाइन्द्रिय (4) भने स्पर्शेन्द्रिय શ્રી ગૌતમસ્વામો-હે ભગવન્ ! શ્રેત્રેન્દ્રિય કેવા આકારવાળી કહેલ છે? ( અર્થાત્ શ્રેત્રેન્દ્રિયની આકૃતિ કેવી છે?
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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