SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 532
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५२ সয়ালা यावत्-अलेश्या अपि, योगपरिणामेन मनोयोगिनोऽति, याबद्-अयोगिनोऽपि, उपयोग परिणामेन यथा नैरयिकाः, ज्ञानपरिणामेन आभिनिवोधिकज्ञानिनोऽपि यावत् केवलज्ञानिनो. ऽपि, अज्ञानपरिणामेन त्रीण्यपि अज्ञानानि, दर्शनपरिणामेन त्रीण्यपि दर्शनानि, चारित्र. परिणामेन चारित्रिणोऽपि, अचारित्रिणोऽपि, चारित्राचारिणिोऽपि, वेदपरिणामेन स्त्री. वेदका अपि, पुरुपवेदका अपि, नपुंसकोदवा अपि, अदेदका पपि, बानव्यन्तरगतिपरिणामेन देवगतिकाः, यथा असुरकुमाराः, एवं ज्योतिका अपि, नवरं तेजोलेश्याः, वैमानिका णामेणं) लेश्यापरिणाम से (काहलेस्ता वि जाव अलेस्ता वि) कृष्णलेल्या वाले भी, यावत् अलेश्या भी (जोगपरिणामेणं भणजोगी वि, जाव अजोगी घि) योगपरिणाम से मनोयोगी भी थावत् अयोधी भी (उबओगपरिणामेणे) उपयोग परिणाम से (जहा नेरइया) जैसे नारक (णाणपरिणामेणं) ज्ञानपरिणाम ले (आभिणियोहियणाणी वि जाच केवलणाणी वि) आभिनियोधिकज्ञानी भी यावत् केवलज्ञानी भी (अण्णाणपरिणाने) अज्ञानपरिणाम से (तिपिण. वि अण्णाणा) तीनों अज्ञालपरिणाल वाले (दसणपरिणामेणं) दर्शनपरिणाम से (तिणि वि दसणा) तीनों दर्शन परिणाम होते है (चरित्तपरिणामेणं) चारित्रपरिणाम से (चरित्ती चि, अचरिती कि, चरित्ताचरिती वि) नारिमघान् भी, चारित्र रहित भी, देश चारित्रवाले भी (वेदारिणानेणं) वेद परिणाम से (इत्थीदेयगा वि, पुरिलवेषगा दि, नलगयेयवा वि) रमी वेदी भी, पुरुप वेदी भी, नपुंसक वेदी मी (अवेयगा वि) अवेदी भी - (बाणमंतरा) वानव्यनार (गदि परिणानेगं देगतिया) गति परिणाम से देवगतिक (जहा असुरकुलारा) जैसे असुरकुमार (एवं जोहसिया वि) इसी युवेश्यावा पशु यावत् २२५ ५ (जोगपरिणामे गं नण जोनी वि जाय अजोगी वि)' यसपरिणामयी मनाये ५ यावत् अयोगी ५ हाय 2. (उवओगपरिणामेगं) रुपये परिणामयी (जहा नेरइया) 24 ना२४ (णाणपरिणामेणं) तान परिमयी (आभिणिवोहियणाणी वि जाव केवलणाणी वि) मासिनिमाधिशानी ५ यावत् सज्ञानी पY (अण्णाणपरिणामेणं) २मज्ञान परिणामथी (तिण्णि वि अण्णाणा) ऐ ज्ञान परिणाम पाणी (दसणपरिणामेणं) शन परिणामयी (तिण्णि वि दसणा) ये हशन परिणाम थाय छ (चारित्तपरिणामेणं) यारित्र परिणामयी (चरित्ती वि, अचरित्ती वि, चरित्ताचरित्ती वि) यारित्रवान् ५ यात्रिरहित पय हेश यारित्रवाणा ५९ (वेदपरिणामेण) २६ परिणामयी (इत्यिवेयगा वि, पुरिसवेयगा वि, नपुंसगवेयगा वि) सी वही , ५३५ वही पर नस४ वही पy, (अवेयगा वि) ही पाय (वाणमंतरा) पान०यन्त२ (गतिपरिणामेणं देवगतिया) गति newथी गति (जहा असुरकुमार।) नेवा असुरमा२ (एवं जोइ सिया वि) से प्रारे न्यनि०४ ५७
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy