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________________ ५०६ प्रशापनास्त्र गौतमस्वामी पृच्छति-'जीवपरिणामे णं भंते कइविहे पण्णत्त ?' हे भदन्त ! जीवपरिणामः खलु कतिविधः-कियत्प्रकारकः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा ! हे गौतम ! 'दस विहे पण्णत्ते' जीवपरिणामस्तावद् दशविधः प्रज्ञप्तः 'तं जहा-गइपरिणामे १ तद्यथा-गतिपरिणामः १, 'इंदियपरिणामे २' इन्द्रियपरिणामः २, 'कसायपरिणामे ३' कपायपरिणामः ३. 'लेसापरिणामे ४' लेश्यापरिणामः ४, 'जोगपरिणामे ५' योगपरिणामः ५, उवओगपरिणामे ६' उपयोगपरिणामः ६, 'णाणपरिणामे ७' ज्ञानपरिणामः ७, 'दसणपरिणामे ८' दर्शनपरिणामः ८, चरित्तपरिणामे १' चरित्रपरिणामः ९, 'वेदपरिणाये १०' वेदपरिणामश्च १०, तत्र परिणाम प्रायोगिक अर्थात् प्रयोगजनित होता है और अजीव का परिणाम वैश्रसिक (स्वाभाविक) होता है । ____ गौतम स्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! जीव का परिणाम कितने प्रकार का होता है? भगवान्-हे गौतम जीव का परिणाम दस प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है-(१) गतिपरिणाम (२) इन्द्रियपरिणाम (३) कषायपरिणाम (४) लेश्यापरिणाम (५) योगपरिणाम (६) उपयोगपरिणाम (७) ज्ञानपरिणाम (८) दर्शनपरिणाम (९) चारित्रपरिणाम (१०) वेदपरिणाम । ___(१) गतिपरिणाम-नरक गतिनाम कर्म आदि के उदय से जिसकी प्राप्ति हो, वह गति परिणाम । (२) इन्द्रिय परिणाम-इन्दन अर्थात् ज्ञान रूप परन ऐश्वर्य के योग से आत्मा इन्द्र कहलाता है । अथवा इद्रते, इति इन्द्रः, अर्थात् जीव । जो इन्द्र का हो वह इन्द्रिय । यहां इन्द्र शब्द से 'इय' प्रत्यय का निपात होता है। आत्मा પ્રાગક જનિત હૈય છે અને અજીવનું પરિણામ (વાભાવિક) હોય છે. શ્રી ગૌતમસ્વામી પુનઃ પ્રશ્ન કરે છે હે ભગવન ' જીવના પરિણામ કેટલા પ્રકારના કહેલાં છે? * શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ! જીવના પરિણામ દશ પ્રકારના કહેલાં છે તે આ પ્રકારે છે (१) गति परिणाम (२) ४न्द्रियपरिणाम (3) ४ाय परिणाम (४) वेश्या परि. लाभ (५) योग परि. (६) ५॥ पनि (७) ज्ञान परिणाम (८) शन परिणाम (6) यात्रि परिणाम (१०) २६ परिभ. (૧) ગતિપરિણામરકગતિ નામકર્મ આદિના ઉદયથી જેની પ્રાપ્તિ થાય તે ગતિ પરિણામ. (૨) ઈન્દ્રિય પરિણામ-ઇન્દન અર્થાત્ જ્ઞાન રૂપ પરમ ઐશ્વર્યોના વેગથી આત્મા इन्द्र ४३वाय छ, ५५ 'इन्दते इति इन्द्रः' अर्थात् ७१.२न्द्रनाय तेन्द्रिय. અહીં ઈન્દ્ર શબ્દથી “રૂ પ્રત્યયના નિપાત થયો છે આત્માનું ઈન્દ્રિય રૂપે પરિણમન ઈન્દ્રિય પરિણામ કહેવાય છે.
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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