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________________ ४९२ प्रज्ञापनास्त्रे दो चउ इको पंच दो छक्क गेक्क रहे व । दो दो णव सत्तेव य ठाणाई उपरि हुनाई ॥२॥ छाया-पट् त्रीणि त्रीणि शून्यं पञ्चैव च नव च त्रीणि चत्वारि । पञ्चैव त्रीणि नव पञ्च सप्त त्रीणि त्रीण्येति चत्वारि पट् ॥ १॥ द्वौ चत्वारि एकः पञ्च द्वे पट एकम अप्टैव । द्वे द्वे नव सप्तैत्र च स्थानानि उपरि भवन्ति ॥२॥ इति, अथ प्रागुक्तामेव संख्यां विशेष रूपेण परिज्ञानार्थ प्रकारान्तरेण प्ररूपयति-'अहव णं छण्णउई छेयणगदाइरासी' अथवा खलु पण्णवविच्छेदनकानि यो राशि ददाति स पण्णवतिच्छेदनक दायी राशि रुच्यते, तथा चार्दैन अर्द्धन छिद्यमानो यो राशिः षण्णवति वारान् छेद प्राप्तुं समर्थः, अन्ते च सकलमेकं रूपं निष्पन्नं भवति स पण्णवविच्छेदनादायी राशी व्यपदिश्यते, यथा प्रागुक्तः पष्ठो वर्गः पश्चमवर्गगुणितः सन् यावान् राशिः सम्पन्नः सोऽवसेयः, तथाहि-अत्र पूर्वोपदर्शितः प्रथमवर्गछिद्यमानो द्वे छेदनके दातुं समर्थो भवति तद्यथाप्रथमच्छेदनकं द्वौ, द्वितीयं छेदनकमेको ददातीति सम्मेल्य द्वे छेदनके संजाने, प्रथमवर्गस्य प्रागुक्तस्य चतुःसंख्यात्मकत्वात्, द्वितीयोवर्गश्चत्वारि छेदनकानि दातुं समर्थः, तस्य षोडश पांच, तीन, नो, पाँच, सानु, तीन, तीन, चार, छह, दो, चार, एक, पाँच, दो, छह, एक, आठ, दो, दो, नो, और सात । ॥१-२॥ ___अब उसी पूर्वोक्त संख्या को विशेष रूप से समझाने के लिए कहते हैंअथवा 'छयानवे छेदनक राशि । जो संख्या आधी-आधी करने पर छयानवे वार छेदन को प्राप्त हो और अन्त में एक बच जाय वह छयानवे छेदनकदायी राशि कह लाती है। यह राशि उतनी ही है जितनी पंचम्न वर्ग का छठे वर्ग के साथ गुणाकार करने पर होती है । जस्ते-पहला दिखलाया हुआ प्रथम वर्ग अगर छेदा जाय तो दो छेदनक देता है -पहला छेदनक दो और दूसरा छेदनक एक । दोनों को मिलाने से दो छेदनक हुए, क्योंकि प्रथम वर्ग की संख्या चार है। इसी प्रकार दूसरे वर्ग के चार छेदनक होते हैं क्यों कि वह सोलह संख्या मही अपाय छे छ, त्रए शून्य, पाय, नव, त्र, यार, पांय, त्रय, नव, पाय सात, ऋष, , यार, छ, मे, या, ये, पाय, , ७, मा, मे, मे, न मते सात ॥ १-२॥ ' હવે એજ પૂર્વોક્ત સં તને વિશેષ રૂપે સમજાવવાને માટે કરે છે અથવા ૯૬ છે;નક રાશિ. “જે સ થ મ અદ્ધિ અપિ કરવાથી ૯૬ વાર છેદને પ્રાપ્ત થઈ અને અન્તમા એક વધે તે ૯૬ દનક રાશિ કહેવાય છે. એ રાશિ એટલી જ છે જેટલી પંચમવર્ગના છઠા વર્ગની સાથે ગુણાકાર કરવાથી થાય છે. જેમ પહેલા બતાવેલ પ્રથમવર્ગ અગર છેદાય તે બે દેદનક આપે છે–પહેલે છેદનક બે અને બીજે છેદનક એક, બન્નેને સરવાળે કરવાથી બે છેદન થયા. કેમકે પ્રથમ વર્ગની સંખ્યા ચાર છે. એ જ પ્રકારે
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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