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________________ प्रमेयवोधिनी टीका पद १२ सू० ६ प्रतरपूरणवक्तव्यनिरूपणम् रिकाणि औधिकानि मुक्तानि, वैक्रियाणां भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च, तत्र खलु यानि तावद बद्धानि तानि संख्येयानि, समये समये अपहियमाणा अपहियमाणाः संख्येयेन कालेन अपहियन्ते, नो चैव खलु अभ्यधिकानि स्युः, तत्र खलं यानि तावद् मुक्तानि तानि खलु यथा औदारिकाणि औधिकानि, आहारकशरीराणि यथा औधिकानि, तैजस कार्मणानि यथा एतेषाञ्चैव औदारिकाणि, वानव्यन्तराणां यथा नैरयिकाणा मौदारिकाणि, वैक्रियशरीराणि यथा नैरयिकाणाम्। नवरं तासां जाता है (असंखेज्जा) असंख्यात (असंखेज्जाहिं उत्सप्पिणि ओसप्पिणीहिं कालओ) काल से असंख्यात उत्सर्पिणियों अवसपिणियों से (खेत्तओ) क्षेत्र से (अंगुल पढमबग्गमूल तड्य बग्गमूलपडप्पण्णं) तीसरे वर्गमूल गुणित अंगुल का प्रथम वर्गमूल (तत्थ णं जे ते सुक्केल्लगा) उनमें जो मुक्त हैं (ते 'जही ओरालिया ओहिया मुक्केल्लगा) वे समुच्चय मुक्त औदारिकों के समान . (वेउव्वियाणं पुच्छा ?) वैक्रिय शरीरों संबंधी पृच्छा (गोयमा ! दुविहां पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (बधेल्लगा य मुक्केल्लगा य) बद्ध और मुक्त (तत्थ णं जे ते बधेल्लगा ते ण संखिज्जा) उनमें जो बद्ध हैं, वे संख्यात हैं (समए समए अवहीरमाणे अवहीरमाणे) समय-समय में अपहृत होते-होते (संखेज्जेणं कालेणं) संख्यात काल में (अवहीरंति) अपहन होते हैं (नो चेव णं अवहीरिया सिया) मगर अपहृतनहीं हो चुकते (जे ते मुस्केल्लगा ते णं जहा ओरालिया ओहिया) जो मुक्त हैं वे समच्चय औदारिक के समान (आहारगसरीरा जहा ओहिया) आहारक शरीर समुच्चय आहारक के समान (तेयाकम्मगा जहा एतेसिं चेव ओरालिया) तैजस (जसंखेज्जा) मस भ्यात (असखेज्जाहिं उसप्पिणि-ओसप्पिणिहि कालओ) ! ५स ज्यात Grami-मक्सपियोथी (खेत्त भो) क्षेत्रयी (अंगुलपढमवग्गमूलं तइयवग्गर्मूलपडुप्पण) श्रीन भूगथी गुत मशुदना प्रथम व भूख (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा) तेसोमांथी २ भुत छ (ते जहा ओरालिया मुक्केल्लगा) ते सभुश्यय भुत मोहारिना समान (वेउब्बियाणं पुच्छा ?) वैश्यि शरी। सधा छ।'? (गोयमा! दुविहा पण्णता) र गौतम ! मेप्रा२ना ४ा छ (तं जहा) तया 24 घरे छ (वल्लिगा य मुक्वेल्लगाय) मा भने भुत (तत्थणं जे ते बल्लिगा तेणं संखिज्जा) तमामा छ, ते। स च्यात छ (समए-समए अवहीरमाणे अवहीरमाणे) समय । समयमा अपाहत.ldi थता (संखेज्जेणं कालेणं) सभ्यात भां (अवहीरंति) मपात थाय छे: (नो चेव णं अवहिरिया सिया) ५ अपाहत नथी jardi (जे ते मुक्केल्लगा तेणे जहा ओरालिया ओहिया) तभी २ भुत छ तमा समस्यय मोहारिनसमान (आहारगसरोरा 'जहा ओहिया) माहा२४ शरी२ सभुश्यय भाडा२४नी समान (तेया कम्मगा जहा एएसि चेव ओरालिया), तरस
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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