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________________ ४७६ प्रज्ञापनास्त्रे जहा ओरालिया, आहारणसरीरा जहा असुरकुमाराणं तेयाकम्मगा जहा एएसिं चेव वेडव्विया जोइसियाणं एवं चेव, तासिणं सेढीणं विक्खंभसूई विछप्पन्लंयुलसयजन्गलिभागो पयरस्स, वेमाणियाणं एवं चेव, नवरं तालिणं सेढीणं विकाससूई अंगुलवितीयवग्गमूलं तइयवग्गमूलपडुप्पण्ण अहवणं अगुलतइयवस्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ, सेसं तं चेव । सरीरपयं समतं ॥सू० ६॥ छाया-हीन्द्रियाणामौदारिकशरीरै बद्धैः प्रतरमपहियते, असंख्याभिरुत्सर्पिण्यवसर्पिणीमिः कालतः, क्षेत्रतोऽगुलप्रतरस्य आवलिकायाश्चासंख्येयभागप्रतिभागेन, तत्र खलु __यानि तावद मुक्तानि तानि यथा औधिकानि औदारिकमुक्तानि, वैक्रियाणि आहारकाणि च बद्धानि न सन्ति, मुक्तानि यथा औधिकानि औदारिकमुक्तानि, तैजसकार्मणानि यथा प्रतर पूरण वक्तव्यता ___ शब्दार्थ-(वेइंदियाणं) दो इन्द्रियो के (ओरालियसरीरेहिं) औदारिक शरीरों से (बद्धेल्लगेहिं) बद्धों से (पथरो) प्रतर (अवहीरइ) अपहत किया जाता है (असंखेनाहिं उत्सप्पिणी-ओसप्पिणाहिं कालओ) काल की अपेक्षा से असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों से (वेत्तओ) क्षेत्र से (अंगुलपयरस्स) अंशुल प्रतर के (आवलियाए य) और आवलिका के (असंखेज्जइभाग पलि. भागेणं) असंख्येय भाग प्रतिभाग से (तत्थ णं) उनमें (जे ते सुक्केल्लगा) जो मुक्त-त्यागे हुए हैं (ते जहा ओहिया ओरालिय मुक्केल्लया) वे.समुच्चय मुक्तों के समान (वेउव्विया आहारगा य वधेल्लगा णत्थि) बद्ध वैक्रिय और आहारक नहीं होते (मुक्केल्लगा जहा ओहिया ओरालियनुल्लगा) मुक्त समुच्चय मुक्त औदारिकों के समान (तेया कम्मगा जहा एतेसिं चेव ओहिया ओरालिया) પ્રતર પૂરણ વક્તવ્યતા शहाथ-(वेइंदियाणं) दीन्द्रयाना (ओरालियसरीरेहि) मोह२ि४ शरीराथी (बर्दोल्लगे हिं) पोथी (पयरो) प्रत२ (अवहीग्इ) अपान ४२॥ छ (असंखेनाहिं उस्सप्पिणि-ओसपिणिहि कालओ) पनी अपेक्षाये. ४री गस भ्यात समि-गरसपिणी साथी । (खेत्तओ) क्षेत्रथी (अंगुलपयरस्स) २५ गुरप्रतरना (आवलियाए य) मन मसिना असंखेज्जइभाग पलीभागेण) असभ्येय मा प्रतिमाथी (तत्य ण) तमामा (जे ते मुक्केल्लगा) रे भुत छे त्या छे (तं जहा ओहिया ओरालियमुक्केल्लया) तया समुस्यय भुटताना समान (वेउब्बिए आहरगाय बल्लिगा नत्थि) ॥ वैठिय भने भाडा२४ ता नथी (मुक्के-- ल्लगा जहा ओहिया ओरालियमुक्केल्लगा) भुत समु२५ भुत 'मोह२ि४ना समान (तेया. कम्मगा जहा एएसिं चेव ओहिया ओरालिया) तेरस भए तभना समुन्यय मोहारि.
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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