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________________ ૮ मनापनाम द्विवर्गमूलप्रत्युत्पन्नम्, अधवा खलु अगुलद्वितीयवर्गमूलधनप्रमाणमात्राः श्रेणयः, तत्र खलु यानि तावद् सुक्तानि तानि खलु यथौदारिकस्य मुक्तानि तथा भणितव्यानि, नरयिकाणां भदन्त ! कियन्ति आहारक शरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रजातानि, तद्यथावद्धानि च मुक्तानि च, एवं यथा औदारिकाणि बद्धानि मुत्तानि च भणितानि तवैव आहारकाण्यपि भणितव्यानि, तैजसकामणानि यथा एतेषाञ्चव वैक्रियाणि स ० ३॥ क्षेत्र से असंख्यात श्रेणियां (पयरस्ल असंखेजहभागो) प्रतर का असंख्यातवां भाग (तासि ण सेढीण) उन श्रेणियों की (विवग्वं भसई) विष्भसूची (अंगुलस्स पढम बग्गसृल) अंगुल का प्रथम वर्गमूल (चितीयवग्गमृल पढप्पण्ण) द्वितीय वर्गमृल से गुणित (अहव ण) अथवा (अंगुलवितीयवग्गमृलघणप्पपाणमेत्ताओ सेडीओ) अंगुल के द्वितीय वर्गखूल के घन प्रमाण मात्र अणियां __(तत्थ णं जे ते सुक्देल्लगा ते णं जहा ओरालिएस्स केल्लगा तहा भाणियदा) उनमें जो मुक्त वैक्रिय हैं, वे मुक्त औदारिक के समान कह लेने चाहिए (नेरइयाणं भंते ! केवड्या आहारगलरीरा पण्णत्ता) हे भगवन् नारकों के आहारक शरीर कितने काहे हैं ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस भांति (बल्लगा मुक्केल्लगा य) बहू और मुक्त (एव) इस प्रकार (जहा ओरालिए बल्लिगा मुक्केल्लगा य भणिया) जैसे औदारिक के बद्ध और मुक्त कहे हैं (तहेव) उसी प्रकार (आहारगा वि भाणियचा) आहारक भी कहने चाहिए (तेया कम्नगाडं जहा एएसिं चेव देउन्धियाई) तैजस और कार्मण जैसे इन्हीं के वैक्रियक थाय छ (खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ) क्षेत्रथी मसभ्यात श्रेणियो (पयरस्स असंखेजह भागो) प्रत२ना मध्यातमी GIL (तासिण सेढीणं) ते श्रेणियोनी (विक्खंभसूई) qिeeM सूयी (अंगुलपढमवगमूलं) मगणनु प्रथम गभूत (वितीय वगमूलपडुप्पणं), द्वितीय q भूतथी गुऐस (अहवणं) मया (अंगुलविइयवग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ) અંગુલના દ્વિતીય વર્ગમૂલના ઘન પ્રમાણમાત્ર શ્રેણિયે (तत्थण जे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालियस्स मुक्केलगातहा माणियव्वा) तमामा જે મુક્ત વૈક્રિય છે, તેઓ મુક્ત ઔદારિકના સમાન કહીં લેવા જોઈએ (नेरइयाग भो। केवइया आहारगसरीरा पण्णत्ता) भगवन् | नारठीन भाडा२४ शश. खi gai छ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) गौतम ! मे प्रा२।। Bा छ (तं जहा) ते २0 ४ारे (वढेलगाय मुक्केल्लगाय) मई मन भुत (एव) से प्रारे (जहा ओरालिएवढेल्लगा मुक्केलगा य भणिया) २१॥ मोडा२ि४ना मद्ध मन भुत ४ा छ (तहेव) ते १ ४२ (आहारगा वि भाणियवा) मोडा२४ ५. नये (तेया कम्मगाई जहा एएसिं चेव वेवियाई) तरस भने हामी का माना य५
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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