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________________ . ४२७ प्रमैयबोधिनी टीका पद १२ सू० २ औदारिकादिशरीरविशेप निरूपणम् कालतो ययौदारिकस्य मुक्तानि तथैव वैक्रियस्यापि, भणितव्यानि, कियन्ति खलु भदन्त ! आहारक शरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञतानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि चे, तत्र खलु यानि किल बद्धानि तानि सलु स्यात् सन्ति, स्यात् न सन्ति, यदा सन्ति जेधन्येन एकं बा, द्वे वा, त्रीणि वा, उत्कृष्टेन सहस्रपृथक्त्वम्, तत्रं खलु यानि किल मुक्तानि तानि खलु अनन्तानि यथा औदारिकस्य मुक्तानि तथैव भणितव्यानि, कियन्ति खलु भदन्त ! तैनसगरीर णि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च, तत्र खल यानि बद्धानि तानि खलु अनन्तानि अनन्ताभिरुत्सपिण्यवसर्पिणीभि रपहियन्ते कालतः, होते हैं (कालो) काल ले (जहा ओरालियस्त मुक्केल्लया तहेव वे उचियरसवि भाणियब्या) जैसे औदारिक के मुक्त कहे हैं, वैले ही वैक्रिय के भी मुक्त कहने चाहिए (केवईयाणं भंते ! आहारगसरीरया पणता !) हे भगवन् ! आहारक शरीर कितने कहे हैं ? (गोयमा ! दुधिहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार के कहें हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (बद्धेल्लमा य मुक्केल्लगा य) या और मुक्त (तत्थ णं जेते बद्धेल्लया) उनमें जो बद्ध हैं (ते णं सिय अस्थि, सिय नत्थि) वे कदाचित होते हैं, कदाचित नहीं होते (जह अत्थि) यदि हो (जहाणेणं एक्को वा दो वा तिष्णि वा) जघन्यतः एक, दो या तीन होते हैं (उकोसेणं सहस्सपुर्हतं) उत्कृष्ट सहस्त्र पृथक्त्व होते हैं (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया) उनमें जो मुक्त शरीर हैं (ते णं अणता) वे अनन्त हैं (जहा ओरालियस्स) जैसे औदारिक के (मुक्केल्लया) मुक्त कहे हैं (तहेव भाणियन्या) उसी प्रकार कहना चाहिए। (केवड्या णं भंते ! तेयालरीरया पणत्ता १) हे भगवन् ! तैजस शरीर कितने को हैं? (गोयमादुविहा पण्णत्ता) हे गोतम! दो प्रकार के कहे हैं (त जहा) मुक्केल्लया तहेव उब्बियास वि भाणियव्वा) का मोहा२ि४ना भुत छ,तार વૈક્રિયના પણ મુક્તક કહેવા જોઈએ. (केणइयागं भंते | आहारगसरीरया पण्णत्ता ?) हे सगवन् । माहा२४ शरीर ai छ (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) 3 गौतम । मे ॥२॥ ४ा छे. (तं जहां) तेमा भा- ४ारे (बद्धेलगा य मुक्केल्लगा य) पद भने भुत (तत्थ णं जे ते वद्धेल्लया) तमामा २ मद्ध छ (तणं सिय अस्थि सिय नस्थि) तेथे ४ायित् डाय छे. पहाथित् नयी जाता (जइ अस्थि) न डाय (जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा) धन्यत. मे8, . मा२ प्रय डाय छे (उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्त) पृष्टयी सख पृथत्व डाय छ (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया) तेमामाथी-२ भुत शरीर छे (वे ण अणंता) तेमा अनन्त छे (जहा ओरालियस्स) रेम मो४ि (मुक्केल्लगा) भुत ४॥ छ (तहेव भाणियब्वा) ८ प्र४४ा में (केवइयाणं भंते तेयंगसरीरया पण्णत्ता?) हे भगवन् ! तस शरीर हेटसा छा छ ? (गोयमा! दुविहा पण्णत्ता) 3 गौतम । मे ना ह्या छे (तं जहा) तेसो मा हारे
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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