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________________ ४०० प्रमापनासूत्रे भापकतया निसृजति ? गौतम ! सत्यभापकतया निसृजति नो मृपाभापाया निस जति, नो सत्यमृपामापकतया निसृजति, नो असत्यमृपाभापकतया निम्नति, एवम् एकेन्द्रियविकलेन्द्रियवों दण्डको यावद् वैमानिका, एवं पृथक्त्वेनापि जीवः खल भदन्त ! यानि द्रव्याणि मृषाभाषकतया गृह्णाति तानि किं सत्यभापकतया निसृजति, मृपाभापकतया, सत्यमृपाभाषकतया, असत्यमृपाभाषकतया निसृजति ? गौतम ! नो सत्यभाजीव जिन द्रव्यो को सत्यभाषा के रूप मे ग्रहण करता है (ताई कि सच्चभा. सत्ताए निसिरइ, मोसभासत्ताए निसरइ, सच्चामोसमासत्ताए निसरइ, अस. च्चामोसभासत्ताए निसरइ?) उन्हें क्या सत्यभाषा के रूप से निकालता है, असत्यभाषा के रूप मे निकालता है, सत्यामृषा भापा के रूप मे निकालता है अथवा असत्यामृषा-व्यवहार भाषा के रूप मे निकालता है ? (गोयमा ! सच्च भासत्ताए निसरइ) हे गौतम! सत्यभाषा के रूप में निकालता है (नो मोस. भासत्ताए निसरति, नो सच्चामोसभासत्ताए निसरनि, नो असच्चामोसभासताए निसरति) मृषाभाषा के रूप मे नहीं निकालता, सत्यामृषाभाषा के रूप मे नहीं निकालता, असत्यामृषा भाषा के रूप में नहीं निकालता, (एवं एगि. दिय-विगलिंदियवज्जो दंडओ जाव वेमाणिया) इसी प्रकार एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियों को छोडकर वैमानिक तक दण्डक कहना चाहिए (एवं पुहुत्तेणवि) इसी प्रकार बहुवचन से भी - (जीवे णं अंते ! जाइं दव्वाइमोसभासत्ताए गिण्हति) हे भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव मृषाभाषा के रूप में ग्रहण करता हैं (ताई कि सच्चभासत्ताए निसरति) उन्हें क्या सत्य भाषा के रूप मे निकालता है (मोसभासत्ताए, रे द्रव्याने सत्य भाषान! ३५मां हर ४३ छे (ताई कि सच्चभासत्ताए निसरइ, मोस भासत्ताए निसरइ, सच्चामोसभासत्ताए निसरइ, असच्चामोसभासत्ताए निसरइ ?) तमने शु સત્ય ભાષાના રૂપમાં બહાર કાઢે છે અસત્ય ભાષાના રૂપમાં કાઢે છે, સત્ય અષા ભાષાના ३५मा ४ है. अथवा असत्या भूषा-व्यवहार मापान। ३५मा ४४ छ ? (गोयमा ! सच्चा भासत्ताए निसरइ) गौतम ! सत्य लापाना ३५मा ४४ छ (नो मोसभासत्ताए निसरइ, नो सच्चामोसभासत्ताए निसरति, नो असच्चामोसभासत्ताए निसरति) भृषा मापाना ३५मां નથી બહાર કાઢતા સત્યમૃષા ભાષાના રૂપમાં નથી કાઢતા, અસત્યા મૃષા ભાષાના રૂપમાં नथी दता (एवं एगिदियविगलिंदियवज्जो दंडओ जाव वेमाणिया) से प्रसार सन्द्रिया मन qिxaन्द्रियो सिवाय वैभानिसुधीना ६४ ४१ नये (एवं पुहुत्तेण वि) मेर પ્રકારે બહુવચનથી પણ કહી લેવા. (जीवेणं भंते ! जाई व्वाइं मोसमासत्ताए गिण्हनि) 3 भगवन् ! २ द्रव्यान १ भृषा भाषाना ३५भा अहए ४२ छ (ताई किं सच्चभासत्ताए निसरति) तेभने शु सत्य सापानी ३५मा मडार ४४ छ (मोसभासत्ताए, सच्चामोसभासत्ताए, असच्चामोसभास
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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