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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ११ सू. ११ नैरयिकाणां भाषाद्रव्यग्रहणनिरूपणम् गौतम ! यथौधिकदण्डकस्तथा एपोऽपि, नवरम् विकलेन्द्रिया न पृच्छयन्ते, एवं मृपाभापया. ऽपि, मत्यामृपाभापयाऽपि असत्यामृपाभाषयापि-एवञ्चव, नवरम् असत्यामृषाभाषया विकलेन्द्रियाः पृच्छयन्ते, अनेन अभिलापेन, विकलेन्द्रियः खलु भदन्त ! यानि द्रव्याणि असत्यामृपाभाषया गृह्णाति तानि किं स्थितानि गृह्णाति, अस्थितानि गृह्णाति ? गौतम ! यथाऔधिकदण्डकः, एवम् एते एकत्वपृथक्त्वेन दश दण्डका भणितव्याः ॥सू० ११॥ द्रव्यों को सत्य भाषा के रूप में ग्रहण करता है (ताईकिं ठियाइं गेण्हति, अठियाई गेण्हति ?) क्या स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ग्रहण करतो है (गोयमा ! जहा ओहियदंडओ तहा एसो वि) हे गौतम ! जैसा ओघिक दंडक कहा, वैसा यह भी जानना (नवरं विगलिंदिया पुच्छिज्जति) विशेषता यह कि विकलेन्द्रियों के विषय में पृच्छा नहीं करनी (एवं योसभासाए वि, सच्चामोसभासाए वि, असच्चामोसभासाए वि) इसी प्रकार मृषा भाषा में भी, सत्यामृषा भाषा में भी असत्यामृषा भाषा में भी (एवं चेव) इसी प्रकार (नवरं) विशेष (असच्चामोसाभासाए विगलिंदिया पुच्छिन्नति इमेणं अभिलावेणं) असत्यामृषा भाषा के विषय में, विकलेन्द्रियों के संबंध में इन शब्दों से प्रश्न करना (विगलिदिए णं भंते !) हे भगवन् ! विकलेन्द्रिय जीव (जाई दवाइं असच्चामोसाभासाए गिण्हइ) जिन द्रव्यों को असत्याभूषा भाषा के रूप में ग्रहण करता हैं (ताइकिं ठियाइगेण्हइ, अठियाई गेण्हति) क्या स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (नोयमा ! जहा ओहियदंडओ) हे गौतम ! जैसे ओधिकदंडक (एवं एए एगत्तपुहुत्तण दल दंडगा - सत्य भाषाना ३५भा अहए ४२ छ (ताई किं ठियाई गेहति, अठियाई गेण्हति ?) शु. स्थित द्रव्यो। अहए ४२ छ मा२ मस्थित द्रव्याने हा ४२ छ ? (गोयमा । जहा ओहियदंडओ तहा एसो वि) गौतम ! २१ मौधि४ ६४ ॥ तवा मा पता (णवरं विगलिंदिया न पुच्छिज्जति) विशेषता के छ विन्द्रियाना विषयमा छ। न ४२वी (एवं मोसा भासाए वि सच्चामोसाभासाए वि असच्चामोसाभासाए वि) मे अरे भृषा लाषाभा पर सत्याभूषा भाषामा पy, असत्या भूषा साषामा ५y (एवं चेव) मे प्रहारे (नवर) विशेष (असच्चामोसाभासाए विगलि दिया पुच्छिज्जंति इमेणं अभिलावेणं) असत्या भूषा भाषा विषयमा विवेन्द्रियाना समन्धमा । शहाथी प्रश्न ४२१॥ (विगलि दिएणं भंते !) 8 लगवन् विवेन्द्रिय ७१ (जाइ दव्वाई असच्चामोसाभासाए गिण्हइ) रे द्रव्योन असत्या भृषा भाषान। ३५भा अहए ४२ छे (ताई कि ठियाई गेण्हइ अठियाई गेण्हइ) शु स्थित द्रव्याने ग्रह ४३ छे मार स्थित द्रव्याने पड ४२ छ ? (गोयमा । जहा ओहियदंडओ) 8 गौतम ! रेभ मौधि४ ४७४ (एवं एए एगत्तपुहुत्तेणं न० ५०
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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