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________________ ३८५ प्रमेयबोधिनी टीका पद ११ सू० १० भाषाद्रव्यग्रहणनिरूपणम् पिप्पलीचूर्णानां वा, मरीचचूर्णानां वा, शृङ्गवेरचूर्णानां वा, चूर्णिक्या भेदो भवति तत् स चूर्णिकाभेदः ३, तत् कः सोऽनुतटिकाभेदः ? अनुतटिका भेदो यत् खलु अघटानां वा, तडागानां वा, हूदानां वा, नदीनां वा, पापीनां वा, पुष्करिणीनां वा, दीर्घिकाणां वा, गुञ्जालिकालां वा, सरसांवा, सरःसरसां वा, सरःपङ्क्तिकागं वा, सरः सर पङ्क्तिकानां वा, अनुतटिकया भेदो भवति तत् सोऽनुतटिकाभेदः ४, तत् कः स उत्कटिकाभेदः ? (जं ण) जो (तिलचुण्णाण वा) तिलों के चूरे का (सुग्गचुण्णाण बा) या मूंग के चूरे का (मासचुण्णाण वा) या उड़द के चूरे का (पिप्पलीवुण्णाण वा) पीपल के चूरे का (मिरीयचुण्णाण वा) काली मिर्च के चूरे का (सिंगवेरचुण्णाण वा) अदरख के चूरे का (चुण्णियाए भेदे भवइ) चूरा करने से भेदन होता है (सेतं चुणियाएभेदे) वह चूर्णिकाभेद है __(से किं तं अणुतडिया भेदे ?) अनुतटिका भेद क्या है ? (अणुतडिया भेदे) अनुतटिका भेद (जं णं) जो (अगडाणवा) कूपों का (तडागाण वा) या तडागों का (दहाण वा) या हूदों का (नदीण वा) या नदियों का (वावीण वा) या वावड़ियों का (पुक्खरणीण वा) या पुष्करिणियों का (दीहिण वा) या दीधि काओं का (गुंजालियाण वा) या वक्र नदियों का (सराण वा) या सरों का (सरसराण वा) या सर-सरों का-बहुत पुष्पों से व्याप्त सरोवरों का (सरपंतियाण वा) सरों की पंक्तियों का (सरसरपंतियाण वा) या सर-सर की पंक्तियों का (अणुतडियाभेदे भवइ) अनुतटिका भेद होता है (से तं अणुतडियामेदे) वह अनुतटिका भेद कहलाता है (से किं तं उक्करिया भेदे ?) उत्कटिका भेद क्या है ? (जंणं) जो (मसाण) २ (तिल चुण्णाण पा) daना मुहाना (मुग्ग चुण्णाण वा) भाना सुहाना (मासचुण्णाण वा) मा२ २५36ना सुहाना (पिप्पली चुण्णाण वा) पीना सुहाना (मिरीय चुण्णाण वा) ॥ भरीना Kalu (सिंगवेरचुण्णाण वा) साहुना युराना (चुणियाए भेदे भवइ) यु। ४२पाथी मेहन थाय छ (सेतं चुणिया भेदे) ते यूगि से छ (से किं तं अणुतडिया भेदे ?) अनुतटि मे शुछ १ (अणुतडिया भेदे) मनुत!ि मेह (जं ण) २ (अगडाण वा) सुवामाना (तडागाण वा) मगर तलावाना (दहाण वा) मगर धरामाना (नदीणवा) म॥२ नहीयाना (वावीण वा) मा२ पावन (पुक्करिणीण वा) या -९०४२यिोना (दीहियाण वा) मा सामान। (गुंजालियाण वा) मग२ qil नहीयाना (सराण वा) २२ सपना (सरसराण वा) अथवा सरसना-या पुण्याची व्याप्त सपना (सरपंतियाण वा) सशवरना. तियाना (अणुतडिया भेदे भवइ) अनुतरि। 'लह थाय छे. (से तं अणुतडिया भेदे) ते मनुतले ४वाय छ (से किं तं उक्तरिया भेदे ?) Brzle ने शुछ १ (ज़ ण) (मूसाण) भूषाना (वा प्र० ४९
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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