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________________ ३७२ प्रज्ञापनासूत्र सान्तरं निसृजति निरन्तरं निसृजति ? गौतम ! सान्तरं निमजति नो निरन्तरं निसृजति, सान्तरं निसृजन एकेन समयेन गृह्णाति, एकेन समयेन निम्नति, एतेन ग्रहण निसर्जनोपपातेन जघन्येन द्वि समयम् उत्कृप्टेन असंख्येयसमयम् अन्तयोहर्तिकम् ग्रहणनिसर्जनोपायं करोति, जीयः खलु भदन्त ! यानि द्रव्याणि भापकतया गृहीतानि निमृजति तानि कि भिन्नाति निसृजति अभिन्नानि निसृजति ? गौतम ! भिन्नान्यपि निसृजति अभिन्नान्यपि निसृजति, यानि भिन्नानि निमृजति तानि अनन्तगुणपरिवृद्धया परिवर्द्धमानानि लोकान्तं जीव भाषा के रूप में गृहीत जिन द्रव्यों को त्यागता है (ताई कि संतरं निसरइ, निरंतरं निसरह ?) उन्हें क्या सान्तर त्यागता है या निरन्तर त्यागता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (संतरं निसरइ, नो निरंतरं निसरइ) सान्तर त्यागता है, निरन्तर नहीं त्यागता (संतरं निस्तरमाणे) सान्तर त्यागता हुआ (एगेणं समएणं गेण्हति) एक समय में ग्रहण करता है (एगेणं समएणं निसरइ) एक समय में त्यागता है (एतेणं गहणनिसरणोवाएणं) इस ग्रहण और निस्सरण के उपपात से (जहण्णेण दुसमइय) जघन्य दो समय के (उक्कोसेणं असंखेजसमइयं) उत्कृष्ट असंख्यात समय के (अंतोनुहुत्तिगं) अन्तर्मुहर्त तक (गहणनिसरणोवायं करेंति) ग्रहण और त्याग उपपात करता है (जीवे णं भंते ! जाई दवाइं भासत्ताए गहियाइं णिसिरति) हे भगवन् ! जीव भाषारूप में गृहीत जिन द्रव्यों को त्यागता है-निकालता है (ताई किं भिण्णाई णिसरति, अभिण्णार्ड णिसरति) क्या उन भिन्न द्रव्यों को निकालता है या अभिन्न द्रव्यों को निकालता है ? (गोयमा ! भिन्नापि निस्सरइ, अभि:नाइंपि निस्सरइ) हे गौतम ! भिन्न द्रव्यों को भी निकालता है, अभिन्न द्रव्यों को भी निकालता है (जाइ भिण्णाई णिसरइ) जिन भिन्न द्रव्यों को निकालता ३५मा गृहीत रे न्यार त्याग छ ? (ताई किं संतरं निसरई, निरंतरं निसरइ ?) तमने शुसान्त२ त्यागे छ भ२ निरन्तर त्यागे छ? (गोयमा) 3 गौतम (संतरं निसरइ, नो निर तर निसरइ) सांतर त्यागे छ, 'निरन्त२ नथा त्याता (संतरं निसरमाणे) सान्तरत्यासी रहेसा (एगेणं समएणं गेण्हति) मे सभयमी अणु रे छ (एगेण समएणं निसरइ) मे समयमा त्यागे छ (एतेणं गहणनिसरणोवाएणं) मा यहुए अन निस्सरणुन पातथी (जहः ण्णेणं दुसमइयं) धन्य २ समये (उकोसेणं असंखेज्जसमइयं) Sट सभ्यात समय अंतोमुहुत्तर्ग) अतभुत सुधा (गहण निसरणोवायं करे ति) अहुए भने त्या पात ४२ छे (जीवेणं भंते ! जाई दवाई भासत्ताए गहियाइ णिसरति) हे सगवन्! १ लाष! ३५भा गृहीत द्रव्यात त्यागे छे. (ताई किं भिन्नाइं णिसरति अभिण्णाई णिसरति ?) शुलिन्न द्रव्याने ४ छ २२ मलिन्न द्रव्याने त्यागे छ ? (गोयमा ! भिन्नाइं पि निस्सरइ, अभिन्नाई पि निस्सरह)- गौतम ! मिन्न द्रव्याने या छे मलिन्नद्रव्योन
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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