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________________ - - प्रेज्ञापनासूत्र अनन्तगुणमुरभिगन्धान्यपि गृह्णाति, एवं दुरभिगन्धान्यपि ग्रहणाति, यानि भावतो रस. वन्ति गृणाति तानि किम् एकरसानि गहूणाति यावत् किम् पश्चरसानि ग्रहणाति? गौतम ! ग्रहण द्रव्याणि प्रतीत्य एकरसान्यपि गृहणाति, यावत्-पञ्चरसान्यपि ग्रहणाति, सर्वग्रहणं प्रतीत्य नियमात् पञ्चरसानि गृणाति, यानि रसवस्तिक्तरसानि गृह्णाति तानि किम् एकअणंतगुण सुन्भिगंधाइपि गिण्हति ?) गंध से सुगंधित जिन द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या एक गुण सुगंधित द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् अनन्तगुण ? (गोयमा एगगुण सुभिधाई पि जाय अणंतगुणस्तुभिगंधाइपि गेण्हइ) हे गौतम ! एकगुणसुगंधित द्रव्यों को भी यावत् अनन्तगुण सुगंधित द्रव्यों को भी ग्रहण करता है (एवं दुग्भिगंधाइपि गेहति) इसी प्रकार दुर्गध वालों को भी ग्रहण करता है। (जाई भावओ रलमंताई गेण्हति ताई कि एगरसाईगिण्हति जाव किं पंचरसाईगेण्डति ?) भाव से रस वाले जिन द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या एक रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् क्या पांच रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयमा ! गहणवाई पडुच्च एगरसाईपि गिण्हनि जाव पंचरसाइपि गेण्हति ?) हे गौतम ! ब्रहणद्रव्यों की अपेक्षा एक रस वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है यावत् पांच रस वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है (सम्वग्गणं पड्डच्च नियमा पंचरसाई गेण्हति) सर्व ग्रहण की अपेक्षा नियम से पांचों रसों वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है __ (जाईसओ तित्तरसाईगेण्हति) रस से तिक्त रसवाले जिन द्रव्यों को (जाइ गंधओ सुब्धिगंधाई गिण्हइ ताई कि एगगुणसुभिगंधाई गिण्हति जाव अणंतगुण मुभिगंधाई पि गिण्हति ?) यी सुगंधित द्रव्याने अहए ४२ छ तो शु એક ગુણ સુગંધિત દ્રવ્યને ગ્રહણ કરે છે? યાવત્ અનન્ય ગુણ સુગન્ધિત દ્રવ્યને ગ્રહણ ४२ छे ? (गोयमा! एगगुणसुभिगंधाइ पि जाव अणंतगुणसुभिगन्धाई पि गेण्हइ) 8 ગૌતમ ! એક ગુણ સુગન્ધિત દ્રવ્યને પણ યાવત્ અનન્તગુણ સુગન્ધિત દ્રવ્યને પણ ગ્રહણ ४२ छ (एवं दुन्भि गंधाइ वि गेहति) मे ॥२ दुनियामाने पाणु यहए१२ छ (जाई भावो रसमंताडं गेण्हति ताई कि एग रसाइं गिण्हति जाव कि पंचरसाई गेहति ?) माथी २५पा २ द्रव्याने अडय ४२ , शु मे २सवाणा द्रव्योन बड ४२ ३ यावत् शु पाय २सा याने यह ४२ छे ? (गोयमा गहणव्वाई पदुच्च एग रसाई नि गिति जाव पंचरसाइ पिण्हति ?) हे गौतम ! डरा द्रव्यानी અપેક્ષાએ એક રસવાળા દ્રવ્યને પણ ગ્રહણ કરે છે, યાવત્ પાંચ રસવાળા દ્રવ્યોને પણ अडएर ४२ छ (सव्वग्गणं पडुच्च नियमा पंच रसाई गेहति) सर्व अडानी अपेक्षाये નિયમથી પચે રસવાળા ને ગ્રહણ કરે છે
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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