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________________ ३२२ प्रज्ञापनासूत्र ये ते असंसारसमापनकाः ते खलु सिद्धाः, सिद्धाः खलु अभापकाः, तत्र खलु ये ते संसारसमापन्नकास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-शैलेशी प्रतिपन्नकाश्च अशैलेशीप्रतिपन्नकाश्च, तत्र खलु ये ते शैलेशी प्रतिपन्नकास्ते खलु अमापकाः, तत्र खलु ये ते अशैलेशीप्रतिपन्नकास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-एकेन्द्रियाश्च, अनेकेन्द्रियाश्च, तत्र खलु ये ते एकेन्द्रियास्ते खलु अभापकाः, तत्र खल ये ते अनेकेन्द्रियास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- पर्याप्तकाश्च अपर्याप्तकाच, तत्र खलु ये ते अपर्याप्तकास्ते खल अभापकाः, तत्र खलु ये ते पर्याप्तकास्ते खलु भापकाः, तद् जीव दो प्रकार के कहे गए हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (संसारसमावण्णगा य असंसारसमावण्णगा य) संसार समापन्न अर्थात संसारी और असंसार समापन्न अर्थात् मुक्त (तत्थ णं जे ते असंसारसमावण्णमा) उनमें जो असंसार समापन्न हैं (तेणं सिद्धा) वे सिद्ध हैं (सिद्धाणं अभासगा) सिद्ध अभाषक हैं (तत्थ पंजे ते संसारसमावण्णगा) उनमें जो संसारी हैं (ते दुविहा पण्णत्ता) वे दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सेलेसीपडिवण्णगा य असेलेसी पडिवण्णगा य) शैलेशी करण को प्राप्त और शैलेशी करण को जो प्राप्त न हों (तत्य णं जे ते सेलेलीपडिवण्णगा ते णं अभासगा) उन में जो शैलेशीप्राप्त हैं। वे अभाषक हैं (तत्थ णं जेते असेलेसी पडिवण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता) उनमें जो अशैलेशीप्रतिपन्न हैं, वे दो प्रकार के हैं ( जहा) वे इस प्रकार (एगिदिया य अणेगिंदिया य) एकेन्द्रिय और अनेकेन्द्रिय (तत्थ णं जे ते एगिदिया) उनमें जो एकेन्द्रिय हैं (ते णं अभालगा) वे अभाषक हैं (तत्थ णं जे ते अणेगे दिया ते दुविहा पण्णत्ता) उनमें जो अनेकेन्द्रिय हैं, वे दो प्रकार के हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (पजत्तगा य अपज्जत्तगा-य) पर्याप्त और अपर्याप्त (तत्थ णं जे ते रे (संसारसमावण्णगा य असंसारसमावण्णगा य) संसा२ सभापन्न अर्थात् संसा भने समसार समापन्न अर्थात् मुन्त (तस्थणं जे ते असंसारसमावण्णगा) तेसोमा असे ॥२ समापन्न छ (तेणं सिद्धा) तमे सिद्ध छे (सिद्धाणं अभासगा) सिद्ध मलाष छ (तत्थणं जे ते संसारममावण्णगा) तमोसा रे संसारी छ (ते दुविहा पण्णता) मे ४२ना ४॥ छे (तं जहा) ते ॥ प्रारे (सेलेसी पडिवण्णगाय, असेलेसी पडिवण्णगा य) शैलेश ४२ने पास अने शैदेशी ४२४ने २ प्रास न डाय (तत्थणं जे ते सेलेसी पडिवण्णगा तेणं अभासगा) तेसोमां-२ शेवेशी ४२४ने प्रात छे ते मलाष छ (तत्थणं जे ते असेलेसी पडिवण्णागा ते दुविहा पण्णत्ता) तमामा २ मशैलेशी प्रतिपन्न छ, तमा ४१२ना छे (तं जहा) ते २0 ४२ (एगिदिया य अणेगिंदिया य) ? न्द्रिय भने भनेन्द्रिय (तत्यणं जे ते एगिदिया) तमाम २ मेन्द्रिय छ (तणं अभासगा) तसा समा५४ छे (तत्थणं जे ते अणेगें दिया ते दुविहा पण्णता) तमामाथी रे भनेन्द्रिय छ, तमाम प्रारना छ (तं जहा) ते २मा प्रशारे (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) पर्याप्त माने
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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