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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ११ सू० ३ भाषापदनिरूपणम् २७३ समडे' नायमर्थः समर्थ:-युक्त्योपपन्नः संभवति, प्रागुक्तयुक्तेः, अथ तर्हि किं सर्वोऽपि न जानातीत्यत आह-'पण्णत्थ सणिणो' नान्यत्र संज्ञिनः, संज्ञिनम्-अवधिज्ञानिनं जातिस्मरं वा सामान्येन विशिष्ट मनः पाटवशालिनं वा विहाय तदन्यो न जानाति, संज्ञी पुनरवधिज्ञानी तु जानात्येवेति भावः । अत्रोष्ट्रादयोऽतिशैशरावस्थाः परिग्रहीतव्याः, नो जरठावस्थाः, जर. ठावस्थायां परिज्ञानसंभवात् ।। सू० ३ ॥ वाविशेषवक्तव्यता मूलम्-अह भंते मणुस्से महिसे आसे इत्थी सीहे वग्धे विगे दीविए अच्छे तरच्छे परस्सरे राससे सियाले विराले सुणए कोलसुणए कोकंतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे शवन्ने सहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ ? हंता, गोयमा ! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा ला एगवऊ, अह भंते ! अणुस्सा जाव चिल्ललगा जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा सा बहुवऊ ? हंता गोयमा ! मणुस्सा जाव चिल्ललगा सत्रा सा बहुवऊ । अह अंते। अगुस्सी महिसी वलवा हत्थिगिया सीही वग्धी विगी दीक्यिा अच्छी तरच्छी परस्सरा रासभी, संगत नहीं है । युक्ति पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। तो क्या कोई भी ऊंट आदि ऐसा नहीं जानता है ? इसका उत्तर यह है कि-संज्ञी के सिवाय, अर्थातू कोई अवधि ज्ञानी, जाति-स्मरणज्ञानी अथवा विशिष्ट मानसिक पटुता वाला ही ऐसा जान सकता है-सव नहीं। यहां ध्यान रखने की बात यह है कि यद्यपि प्रदेशों में सामान्य रूप से उष्ट्र आदि का उल्लेख किया गया है, तथापि उनका अभिप्राय शैशव अवस्था वाले ऊंट आदि ही समझना चाहिए, परिपक्व उम्र वाले नहीं, क्यों कि परिपक्ख उम्र वालों को उक्त प्रकार का ज्ञान होना संभव है ॥३॥ નથી. યુક્તિ પૂર્વવત્ સમજી લેવી જોઈએ. તે શું કેઈ પણ ઊંટ આદિ એવું નથી જાણતા ? એને ઉત્તર એ છે કે–સન્નીના સિવાય અર્થાત્ કોઈ અવધિજ્ઞાની, જાતિ મરણ જ્ઞાની અથવા વિશિષ્ટ માનસિક પટુતાવાળા જ એવું જાણી શકે છે-અધા નહીં. અહીં ધ્યાન રાખવાની વાત એ છે કે યદ્યપિ પ્રશ્નોમાં સામાન્ય રૂપથી ઉષ્ટ્ર આદિને ઉલ્લેખ કરે છે, તથાપિ એમને અભિપ્રાય શેશવ અવસ્થાવાળા ઊંટ આદિ જ સમજવા જોઈએ, પરિપકવ ઉમ્મરવાળા નહીં, કેમકે પરિપકવ ઉમ્મરવાળાઓને ઉક્ત પ્રકારનું જ્ઞાન य सब छ. ॥ ३ ॥ प्र०२५
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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