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________________ प्रबोधिनी टीका पद ११ ० २ भाषापदनिरूपणम् २४७ गौतम ! जातिरिति स्त्रीप्रज्ञापनी, जातिरिति पुंप्रज्ञापनी, जातिरिति नपुंसकप्रज्ञापनी प्रज्ञापनी खलु एषा भाषा न एपा भाषा मृषा ॥ सू० २ || टीका-पूर्व यथावस्थित वस्तुतत्त्वाभिधान्या भापाया आराधनीत्वात् सत्यत्वं प्ररूपितम्, तद्विषये गौतमः पुनः पृच्छति - 'अह भंते ! गाओ मिया पश्च पक्खी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसी भासा मोसा ? हे भदन्त ! अथ गावः प्रसिद्धाः, मृगा अपि प्रसिद्धाः, पशवः - अजा दयोsपि प्रसिद्धाः, पक्षिणोऽपि काकादयः प्रसिद्धा एवेतिरीत्या प्रज्ञापनी - प्रज्ञाप्यतेऽर्थोऽनयेति प्रज्ञापनी - अर्थप्रतिपादिका प्ररूपणी या खलु एषा भाषा किं सत्या व्यपदिश्यते ? नैषा भाषा मृपा व्यपदिश्यते १ अयमभिप्रायः - गावः, इति भाषा गोजातिमभिधत्ते जातौ च पुंसगपण्णवणी) जाति में जो नपुंसकप्रज्ञापनी है (पण्णवणी णं एसा भासा ) यह भाषा प्रज्ञापनी है ( न एसा भासा मोसा ?) यह भाषा मृषा नहीं है ? (हंता गोमा ! जातीति इत्थि पण्णवणी, जाईति पुमपण्णवणी, जाईति णपुंसगपण्णवणी, पण्णवणी णं एसा भासा) हां गौतम ! जाति में जो स्त्रीप्रज्ञापनी है, जाति में पुरुषप्रज्ञापनी है, जाति में जो नपुंसकप्रज्ञापनी है, वह भाषा प्रज्ञापनी है ( न एसा भासा मोसा) यह भाषा मृषा नहीं है । टीकार्थ- पहले वास्तविक वस्तुस्वरूप का अभिधान करने वाली भाषा आराधनी होने से सत्य है, ऐसी प्ररूपणा की गई थी, अब उसके विषय में गौतम ! पुनः प्रश्न करते हैं । 1 हे भगवन् ! 'गाओ' गायें 'मिया' अर्थात् मृग, 'पस्' अर्थात् पशु, 'पक्खी' अर्थात् पक्षी, इस प्रकार प्रज्ञापनी अर्थात् प्ररूपणीया अथवा अर्थ का प्रतिपादन करने वाली यह भाषा क्या सत्य कहलाती है ? इस भाषा को मृषा ( मिथ्या ) नहीं कहते ? प्रश्न का आशय यह है कि 'गाओ' (गावः - गाये ) यह भाषा (जातीति पुम पण्णवणी) भतिमां ने पु३ष प्रज्ञायनी छे (जतीति नपुंसग पण्णवणी) भतिभां नपुंसह अज्ञानी छे ? (पण्णवणीणं एसा भोसा) भी भाषा अज्ञापनी छे (न एसा भासा मोसा) मा भाषा भूषा नथी ? (हंता गोयमा ! जातीति इत्थि पण्णवणी, जोईति पुम पण्णवणी, जाई ति णपुंसग पण्णवणी, पण्णवणी णं एसा भासा ) | गौतम ! लतियां ने खी अज्ञान પની છે, જાતિમાં પુરૂષ પ્રજ્ઞાપની છે, જાતિમાં જે નપુંસક પ્રજ્ઞાપની છે, તે ભાષા પ્રજ્ઞાधनी छे (न एसा भासा मोसा) मे भाषा भूषा नथी. ટીકા પહેલાં વાસ્તવિક સ્વરૂપનું અભિધાન કરવાવાળી ભાષા આરાધની હાવાથી સત્ય છે, એવી પ્રરૂપણા કરાઈ હતી, હવે તેની ખાખતમાં ગૌતમ સ્વામઔફરી પ્રશ્ન કરે છે हेलगवन् ! (गाओ) गाये। (मिया) अर्थात् भृग (पस) अर्थात् पशु (पक्खि ) अर्थात् પક્ષી એ રીતે પ્રજ્ઞાપની અર્થાત્ પ્રરૂપીયા અથવા અનું પ્રતિપાદન કરવાવાળી આ ભાષા શુ' સત્ય કહેવાય છે? એ ભાષાને મૃષા નથી કહેતા ? પ્રશ્નના આશય એ છે કે 1
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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