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________________ प्रभयबोधिनी टीका पद ११ सू० १ भाषापदनिरूपणम् २३३ धारणी भाषा, तथा चिन्तयामीति अवधराणी भाषा ? हन्त, गौतम ! मन्ये इति अवधारणी. भाषा, चिन्तयामीति अवधारणी भाषा, अथ सन्ये इति अवधारणी भाषा, अथ चिन्तयामीति अवधारणी भाषा, तथा मन्ये इति अवधारणी भापा, तथा चिन्तयामीति अवधारणी भापा, अवधारणी खलु भदन्त ! भापा किं सत्या, मृषा, सत्यामृपा, असत्यामृपा ? गौतम ! स्यात् सत्या, स्थात् मृपा, स्यात् सत्यामृपा, स्यात् असत्याभूषा, तत् केनाथन भदन्त ! चिंतेमि ओधारिणी मासा) में चिन्तन करू किं भाषा अवधारिणी है ? (तह) तथा-उसी प्रकार (मण्णासीति ओधारिणी भासा) मानता हूं कि भाषा अव. धारिणी है (तह चिंतेमीति ओहारिणीभासा) उसी प्रकार चिन्तन करता हूं कि भाषा अवधारिणी है (हंता) हां (गोयमा) हे गौतम ! (मण्णामीति ओधारिणी भासा) भाषा अवधारिणी है, ऐला तुम मानते हो (चिंतेगीति ओधारिणी भासा) भाषा अवधारिणो है, ऐसा तुम सोचते हो (अह मण्णामीति ओधारिणी भाला) मानो कि भाषा अवधारिणी है (चिंतेमीति ओधारिणी भासा) चिन्तन करो कि भाषा अवधारिणी है तह (मण्णामीति ओधारिणी भासा) पूर्ण रूप से मानो कि भाषा अवधारिणी है (तह चिंतेमीति ओधारिणी भासा) पूर्ण रूप से सोचो कि भाषा अवधारिणी है। ___ (ओहारिणी णं भंते ! भासा) हे भगवन् ! अवधारिणी भाषा (किं सच्चा, मोसा, सच्चामोसा, असच्चामोसा ?) क्या सत्य है, असत्य है, सत्यामृषामिश्रा-है अथवा असत्या-मृषा-अनुभय है ? (गोयमा) हे गौतम ! (सिय सच्चा) सत्य भी होती है (सिय मोसा) (मृषा भी होती है (सिय सच्चामोसा) सत्यामृषा भी होती है (सिय असच्चामोसा) असत्यामृषा भी होती है। अवधारी छ ? (तह) तथा मे प्रारे (मण्णामीति ओधारिणी भासा) भानु छु। भाषा अवधारणा छ (तह चिंतेमीति ओहारिणी भासा) मे४ ४.२ यिन्तन ४३छु है भाषा अवधारिणी छ (हंता) है। (गोयमा ।) हे गौतम। (मण्णामीति ओधारिणी भासा) भाषा अवधारिणी छे, मेस तमे माना छ। (चितेमीति ओधारिणी भासा) साषा मचारिणी छे, ये तमे विया। छ। (अहमण्णामीति ओधारिणी भासा) माना है भाषा मारिणी छे (चिंतेमीति ओधारिणी भासा) यिन्तन ४२। भाषा २qयारी छ (तह मण्णामीति ओधारिणीभासा) पू ३२ माना है लाषा अवधारिणी छ (तह चिंतेमीति ओधारिणी भासा) पूर्ण ३ विया। भाषा अवधारणी छे । (ओहारिणीणं भंते ! भासा) है भगवन् ! अवधारिणी भाषा (किं सच्चा, मोसा, सच्चामोसा, असच्चामोसा') शु सत्य छ, ससत्य छ, सत्याभूषा भित्र छ, अथवा मसत्यभूषा मनुन छ १ (गोयमा ) 3 गौतम । (सिय सच्चा) सत्य ५४ डाय छ (सिय मोसा) भृष! ५५ डाय छ (सिय सच्चा मोसा) सत्याभूषा ५९५ डाय छे (सिय असच्चा मोसा) असत्य भृष५५ डाय छ म० ३०
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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