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________________ १८६ ' प्रशोपनासूत्र एकम् अचरस, चरमाणि संख्येयगुणानि, अचरसं चरमाणि च द्वयान्यपि विशेषाधिकानि, प्रदेशार्थतया सर्वस्तोकाः परिमण्डलस्य संस्थानस्य संख्येयप्रदेशिकस्य संख्येयप्रदेशावगाढस्य चरमान्तप्रदेशाः, अचरमान्तप्रदेशाः संख्येयशुणाः चरमान्तप्रदेशाश्च अचरमान्तप्रदेशाश्च द्वयेपि विशेषाधिका, द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया सर्वस्तोकम् परिमण्डलस्य संस्थानस्य संख्येयप्रदेशिकस्य संख्येयप्रदेशावगाढस्य एकम् अचरमम्, चरमाणि संख्येयगुणानि, अचरमञ्च चरमाणि च द्वयान्यपि विशेषाधिकानि, चरमान्तप्रदेशाः संख्येयगुणाः, अचरमान्तप्रदेशाः संख्येयगुणाः चरमासंख्यातप्रदेशी, संख्यातप्रदेशों में अवगाढ परिमंडल संस्थान का द्रव्य से एक अचरम लबले कम है (चरिमाइं संखेज्जगुणाई) चरमाणि संख्यातगुणा अधिक हैं (अचरमं चरमाणि य दो वि विखेसाहियाई) अचरम और अचरमाणि दोनों विशेषाधिक हैं (पदेलट्टयाए) प्रदेशों की अपेक्षा (सव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स संखिज्जपएसोगाढस्ल चरभंतपएसा) संख्यातप्रदेशी, संख्यातप्रदेशों में अवगाढ परिमंडल संस्थान के चरमान्तप्रदेश सब से कम हैं (अचरमंतपएसा संखेज्जगुणा) अचरमान्तप्रदेश संख्यातगुणा हैं (चरमंतपएसा य अचरभंतपएसा य दोवि विसेसाहिया) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश दोनों विशेषाधिक हैं (दव्वट्टपएसट्टयाए) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा (सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपएसियस्त संखेज्जपएसोगाढस्स एगे अचरिमे) संख्यातप्रदेशी एवं संख्यालप्रदेशों में अवगाढ परिमंडल संस्थान का एक अचरम है (चरमाइं संखेज्जगुणाई) चरमाणि संख्यात गुणा हैं (अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियाई) अचरम और चरमाणि दोनों विशेषाधिक हैं (चरमंतप ___ (गोयमा ! सव्वत्थोवे परिमंडलसंठाणस्स संखेज्जपएसियस संखेज्जपएसोगाढस्स दव्वदयाए एगे अचरिमे) गौतम । सज्यात प्रदेशी, सभ्यात प्रदेशमा अवसाद परिभस सस्थानना द्रव्यथी मे४ मयरम सौथी मेछ। छ (चरमाइं संखेज्जगुणाई) यर भाथि सध्यातगुणा अधि४ छ (अचरमं चरमाणि य दोवि विसेसाहियाई) मयरम भने यमा मन्न विशेषाधि४ छ (पएसट्टयाए) प्रशानी अपेक्षाय (सव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स संखिज्जपएसियस संखिज्जपएसोगाढस्स चरमंतपएसो) सध्यात अशी, સંખ્યાત પ્રદેશમાં અવગાઢ પરિમંડલ સંસ્થાનના ચરમાન્ત પ્રદેશ બધાથી ઓછા છે. (अचरमंतपरसा संखेज्जगुणा) मयरमान्त प्रदेश सज्यात छ (चरमंतपएसाय अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया) य२मान्त प्रदेश मने भयभान्त प्रदेश मन्त्र विशेषाघि छ (दबटुपएसद्वयाए) द्रव्य भने प्रशानी अपेक्षा २ (सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपएसियरस संखेज्जएपसोगाढस्स एगे अचरिमे) सभ्यात प्रदेशी तमन सभ्यात प्रदेशोभा मा परिभ3 संस्थान से मयरम छ (चरमाइं संखिज्जगुणाई) ५२माण सध्यातगुणी छे (अचरमं च घरमाणि य दो वि विसेसाहियाई) अय२म माने यरमा भन्ने
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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