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________________ प्रदापनास्त्रे २२सरीत्या पञ्चसु आकाशप्रदेशेषु समश्रेण्या विश्रेण्या चावगाहते तत्र त्रयः परमाणवस्लिप आकाशप्रदेशेषु समश्रेण्या व्यवस्थितेषु वर्तन्ते, द्वौ परमाणू च विश्रेणिस्थयोयोराकागप्रदेशयो वर्ते ते तदा त्रयाणामा काशप्रदेशानां मध्ये आयन्तप्रदेशवर्तिनौ द्वौ परमाणू चरमौ, मध्यश्च परमाणुरचरमः, द्वौ च विश्रेणिस्थौ अवक्तव्यौ भवतः इति तत्समुदायात्मकः पञ्चप्रदेशिक स्कन्धोऽपि 'चरमौ चाचरमश्चावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाइं च अचरमाइं च अवत्तव्यए य २५' पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित् 'चरमौ चाचरमौ चावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा पञ्चप्रदेशिकः स्कन्यो वक्ष्यमाणत्रयोविंशस्थापना२३रीत्या समश्रेण्या विश्रेण्या च पञ्चसु आकाशप्रदेशेषु अवगाहते, नत्र चत्वारः परमाणवश्चतुर्यु आकाशप्रदेशेषु समश्रेण्या व्यवस्थितेषु वर्तन्ते एकश्च परमाणुर्विश्रेणिस्थो वर्तते तदा चतुर्णामाकाशनहै। वह इस प्रकार-जव पंचप्रदेशी स्कंध आगे कही जाने वाली बाईसवीं स्थापना के अनुसार पांच आकाशप्रदेशों में समश्रेणी और विश्रेणी से अवगाहन करता है, उनमें से तीन परमाणु समश्रेणी में स्थित नीन आकाश प्रदेशों में अवगाह होते हैं और दो परमाणु विश्रेणी में स्थित दो आकाश प्रदेशों में अवगाढ होते हैं, तब आकाशप्रदेशों में से आदि-अन्त प्रदेशवर्ती दो परमाणु 'चरमौ' कहलाते हैं और मध्यका परमाणु 'अचरम' कहलाता है और विश्रेणी में स्थित दो पाणु 'अवक्तव्यो' होते हैं । इस प्रकार इनका समुदाय वह पंचप्रदेशी स्कंध 'चरमो-अचरम-अवक्तव्यो' ऐसा कहा जाता है। पंचप्रदेशी स्कंध कवचितू, 'चरमौ-अचरमौ-अवक्तव्य' भी कहलाता है। जब पंचप्रदेशी स्कंध आगे कही जाने वाली तेईसवीं स्थापना के अनुसार समश्रेणी और विश्रेणी में स्थित पांच आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है और उनमें से चार परमाणु समश्रेणी में स्थित चार आकाशप्रदेशों में अवगाढ होते हैं और एक परमाणु विश्रेणी में स्थित होता है । तब उन चार में से आदि-अन्त पये अशी २४.५ ४ययित् चरमौ अचरम-अवक्तव्यौ ५ ही शाय छे. ते मा પ્રમાણે-જ્યારે પંચ પ્રદેશ સ્કંધ આગળ કહેવામાં આવનાર બાવીસમી સ્થાપનાના અનુસાર પાંચ આકાશ પ્રદેશોમાં સમશ્રેણી અને વિશ્રેણથી અવગાહન કરે છે. તેમાંથી ત્રણ પરમાણુ સમણીમાં રહેલા ત્રણ આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે. અને બે પરમાણુ વિશ્રેણીમાં રહેલ બે આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે. ત્યારે આકાશ પ્રદેશોમાંથી આદિ અને અંતના પ્રદેશવતી બે પરમાણુ રામ કહેવાય છે, અને વચલું પરમાણું 'अचरम' ४९वाय छ, भने [वश्रेणीमा २२३ मे ५२मा 'अवक्तव्यौ डाय छे. या रीते साना समुदाय ३५ ते ५य प्रदेशी २४५ 'चरमौ अचरम अवक्तव्यौ' से प्रभारी ४३वाय छे. ५२ प्रदेशी २४५ ४थायित् 'चरमौ-अचरमौ-अवक्तव्य' ५ ४ही शय छे, न्यारे પંચ પ્રદેશી આગળ કહેવામાં આવનાર તેવીસમી સ્થાપનાના અનુસાર સમશ્રેણી અને વિશ્રેણમાં સ્થિત પાચ આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે અને તેમાંથી ચાર પરમાણુ
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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