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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चरमाचरमत्वनिरूपणम् १३५ चरमौ च अचरसश्च अवक्तव्यश्च २३ स्यात् चरमौ च अचरमश्च अवक्तव्यौ च २४ स्यात् चरमौ च अचरमी च अवकाव्यश्च २५ स्यात् चरमौ च अचरमौ च अवक्तव्यौ च २६ अष्ट प्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः पृच्छा, गौतम ! अष्टप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् चरमः १ नो अचरमः २ स्यादवक्तव्यः ३ नो चरमाणि ४ नो अचरमाणि ५, नो अवक्तव्यानि ६, स्यात् चरमश्च अचरमश्च ७ स्यात् चरमश्च अचरमाणि च ८ स्यात् चरमाणि च अचरमश्च ९ क्तव्य है, (२१) (णो चरिमे व अचरमाईच अवत्तव्ययाइ च) चरम, अचरमाणि और अवक्तव्यानि नहीं, (२२) (सिय चरमाईच अचरमेय अवत्तव्चए य) कथंचित् चरमाणि अचरस और अवक्तव्य है, (२३) (सिय चरमाइ च अचरम य अवत्तव्वयाई च) कथंचित् चरमाणि, अचरम और अवक्तव्यानि है, (२४) (सिय चरमाईच अचरमाई च अवत्तव्यए य) कथंचित् चरमाणि, अचरमाणि और अवक्तव्य है, (२५) (लिय चरमाई च अचरमाई च अवत्तव्ययाई च) कथंचित् चरमाणि अचरभाणि और अवक्तव्यानि है, (२६) । ' (अट्ठपएसि णं भंते ! खंधे पुच्छा ) हे भगवन् ! अष्टप्रदेशी स्कंध के विषय में.पृच्छा ? (गोयमा ! अठ्ठपएसिए खंधे) हे गौतम ! अष्टप्रदेशी स्कंध (सिय चरमे) कथंचित् चरम है, (१) (नो अचरमे) अचरम नहीं, (२) (सिय अवत्तव्वए) कथंचित् अवक्तव्य है, (३) (नो चरमाई) चरमाणि नहीं, (४) (नो अचरमाई) अचरमाणि नहीं, (५) (नो अवत्तव्बयाई) अवक्तब्ध नहीं, (६) (सिय चरमे य अचरिमे य) कथंचित् चरम और अचरम है, (७) (सिय चरिमे य अचरिमाई च) कथंचित् चरम और अचरमाणि है, (८) (सिय चरमाइं अचरमे छ. २० (विय चरमे य अचरमाईच अवत्तव्बए य) ४ थायित् यरभ भयरभागि मन, मतव्य छे. २१ (णो चरिमे य अचरमाइ च अवत्तब्धयाइंच) २२म, मयरमा भने Ad०यानि नथी. २२ (सिय चरमाईच अचरमे च अवत्तव्बए य) ४थयित् यसमा मयरम अने. २०१४तव्यानि छ. २३ (सिय चरमाइं च अचरमे य अवत्तव्वयाई च) ४थयित् यरभागि भयरम भने भवतव्यानि छ. २४ (सिय चरमाइं च अचरमाइ च अवत्तव्वए य) ४थायित २२माथि भयरमाणि मन. २मतव्य छे. २५ (सिय चरमाई च अचरमाईच अवत्तव्वयाई च) ४थथित्यमा मयरमा भने २१४d०यानि छे. २६ (अट्ठपएसिणं भंते । खंधे पुच्छा ?) लगवन् । मष्ट अशी २४न्धन विषयमा २७॥ ? (गोयमा ! अदुपएसिए खंधे) : गौतम ! मष्ट अशी २४५ (सिय चरमे) ४. थित् २२म छ. १ (नो अचरमे) मयरम नयी, २ (सिय अवत्तव्वए) ४थायित् मतव्य छे. ३ (नो चरमाई) ५२मा नथी, ४ (नो अचरमाइ) मयरमाण नथी, ५ (नो अवत्तव्वयाई) २३१४तव्यानि नथी. ६ (सिय चरिमे य अचरिमे य) ४थायित् २२म भने भन्यम छ, ७ (सिय चरिमे य अचरिमाइं च) ४थायित् यम भने मयरमा छ, ८ (सिय
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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