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________________ १०८ प्रमापदान्य भवन्ति, लोकस्य चरमखण्डानां वस्तुतोऽसंख्येयत्वेऽपि पूर्वोपदर्शितपृथ्विीस्थापनापरिकल्पनया तानि अष्टौ परिकल्प्यन्ते, तद्यथा-एकैकं चतसृपु दिक्षु एकैकं च विदिक्षु इति, यलोकस्य चरमखण्डानि तु अलोकस्थापना परिकल्पनया द्वादशपरिकल्पन्ते, तद्यथा-एक चतसपु दिन। द्वे विदिक्षु इति, द्वादनानाञ्चाष्टभ्यो न द्विगुणत्वं नो वा त्रिगुणत्वं किन्तु विशेषाधिकन्यमेव संभवति, तेभ्योऽपि-अलोकस्य चरमखण्डेभ्यः 'लोगस्स य अलोगस्स य अचरम य चरमाणि य दोवि विसेसाठियाई लोगस्य चालोकस्य च अचरमश्च चरमाणि चेति दृयान्यपि विशेपाविकानि भवन्ति लोकस्य चरमखण्डानि पूर्वोक्तपरिकल्पनया अष्टौ एकमचरमखण्डमिति उभयसंमेलने नव शतस् अलोकस्यापि चरगाचरमस्खण्डानि समुदितानि त्रयोदशभवन्ति, उभयेषां संमेलने तु द्वाविंशतिः, तस्याश्च हादगभ्यो न द्विगुणितत्वं, नो वा त्रिगुणितत्वं किन्तु विशेपाधिकत्यमेवेति अलोकस्य चरमखण्डेभ्यो लोकालोकचरमाचरमखण्डानि समुदितानि विशेपाधिकानि चरम खंड हैं तो वास्तव में असंख्यात परन्तु पृथ्वी की स्थापनाइस प्रकार की है, इस स्थापना की कल्पना से वे आठ माने जाते हैं, वे इस प्रकार है-एक एक चारों दिशाओं में और एक-एक चारों विदिशाओं में। अलोक के चरम खंड अलोक की स्थापना की परिकल्पना के आधार पर बारह माने जाते हैं, यथा-एक-एक चारों दिशाओं के और दो-दो चार विदिशाओं में। यह बारह की संख्या अष्ट लेन दुगुनी है, न तिगुनी है, किन्तु विशेषाधिक ही कही जा 'सकती है। अलोक के चरम खंडों की अपेक्षा लोक और अलोक का अचरम और उनके चरम खण्ड दोनों मिलकर विशेषाधिक होते हैं। क्यों कि पूर्वोक्त कल्पना के अनुसार लोक के चरम खंड आठ है और अचरमखंड एक है, दोनों मिलकर नौ होते हैं। इसी प्रकार अलोक के भी चरम और अचरम खंड मिल कर तेरह हैं । और इन दोनों को मिला दिया जाय तो वाईस होते हैं। यह 'घाईस संख्या, बारह ले दुगुनी-तिगुनी आदि नहीं है, किन्तु विशेषाधिक ही ખ્યાત પરંતુ પૃથ્વીની સ્થાપના] આ રીતે કરી છે. આ સ્થાપનાની કલ્પનાથી તેઓ આ भनाय छेते।। प्रारे छे-एकएक यारे हिशायमा अने से 22 सारे विशायमां, અલકના ચરમ ખંડ એલેકની સ્થાપનાની પરિકલ્પનાના અધાર પર બાર મનાય છે. ‘યથા એક એક ચારે દિશાઓમાં અને બે બે ચાર વિદિશાઓમાં. આ બારની સંખ્યા 'આઠથી બમણી છે, ત્રિગુણી નથી; પરન્તુ વિશેષાધિક જ કહેવાય છે. અલેકના ચરમ ખડાની અપેક્ષાએ લેક અને અલેક અચરમ અને તેમના ચરમ ખંડ બને મળીને વિશેષાધિક થાય છે. કેમકે પૂર્વોક્ત કપનાના અનુસાર લેકના ચરમ ખંડ આઠ છે અને અચરમ - ખંડ એક છે, અને મળીને નવ થાય છે. એ જ રીતે અલેકના પણ ચરમ અને અચરમ ખંડ મેળવીને તેર છે. અને તે બન્નેને મેળવી દેવાય તે બાવીસ થાય છે. આ બાવીસ સંખ્યા બારથી બમણી કે ત્રણ ગણું આદિ નથી, પણ વિશેષાધિક છે. આ પ્રકારે અલેકના
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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