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________________ -nrn प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सु.१०९ इन्द्रियपुद्गलपरिणामनिरूपणम् ९३१ दुरूवत्ताए परिणमंति-दुरूवा पोग्गला सुरूवत्ताए ? हेता गोयमा !.' अथ नूनं भदन्त ! सुरूपा ये पुद्गलास्ते दुरूपतया, एवं-दूरूपाः पुद्गलाः सुरूपतया परिणमन्ति ? हन्त गौतम ! पूर्व सुरूपाः परिणामे दूरूपाः पूर्व दुरूपाः परिणाम मुरूपा भवन्ति नाऽत्र विप्रतिपत्तिः । एवं सुब्मिगंधा पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति, दुन्मिगंधा पोग्गला सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति ? हता-गोयमा !' एवं पूर्व सुरभिगन्धाः परिणामे दुरभिगन्धतया० दुरभिगन्धाश्च पुद्गलाः सुरभिगन्धतया परिणमन्ति किम् ? हन्त गौतम ! तथैव । एवं सुफासा दुफासत्ताए, दुरभिशब्दरूप से और दुरभिशब्द सुरभिशब्द रूप से परिणम जाते हैं 'से णूणं भंते ! सुरूवा पुग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा पुग्गला सुरूवत्ताए ? हे भदन्त ! तो क्या सुरूप पुद्गल दूरूप पुनल में परिणम जाते हैं और दुरूप पुद्गल सुरूप में परिणम जाते हैं ? 'हंता, गोयमा !' हां गौतम ! सुरूप पुद्गल दुरूपपुद्गल में और दुरूपपुद्गल सुरूप में परिणम जाते हैं 'एवं सुन्भिगंधा पोग्गला दुन्भिगंधत्ताए परिणमंति, दुन्भिगंधा पोग्गला सुन्भिगंधत्ताए परिणमंति' इसी प्रकार से क्या भदन्त ! सुरभिगंधरूप पुद्धलदुरभिगंधरूप में और दुरभिगन्धरूप पुद्गल सुरभिगन्धरूप में परिणम जाते हैं ? 'हंता, गोयमा !' हां गौतम ! सुरभिगन्धरूप पुद्गल दुरभिगन्धरूप में और दुरभिगन्धरूप पुद्गल सुरभिगन्धरूप में परिणम जाते हैं 'एवं सुफासा दुफासत्ताए.' इसी प्रकार से क्या सुस्पर्शरूप पुद्गल क्या दुःस्पर्शरूप से परिणत हो जाते हैं ? और दुःस्पर्शरूप हुए पुगल क्या सुस्पर्शरूप से पाथी मने मि श६ सुरलि शम्४ पाथी परिभी तय छे. 'से णूणं भते ! सुरूवा पुग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति दुरूवा पोग्गला सुरूवत्ताए' मावन् ! તે શું? સારા રૂપવાળા પુદ્ગલે ખરાબ રૂપ પણાથી પરિણમી જાય છે? भने ५२५ पुगसो सारा ३५ पाथी परिभी तय छे ? 'हंता गोयमा!' હા ગૌતમ! સુરૂપ વાળા પગલે દુરૂપ પુદ્ગલ પણથી અને દુરૂપ પુદ્ગલે सु३५ पाथी परिशुभी तय छे. 'एवं सुन्मिगंधा पोग्गला दुन्भिगंधत्ताए परिणमंति' मे प्रमाणे मावन् सुमध३५ पुगस दुध मां मने हुन ५ ३५ पुगसो सुगध पाथी परिशुभी तय छ १ 'हंता गोयमा !' ગૌતમ! સુગંધ રૂપ પુદ્ગલ દુર્ગધપણાથી અને દુર્ગધ રૂપ પુદ્ગલ સુગંધ थी परिशुभी तय छ. 'एवं सुफासा दुफासत्ताए०' या प्रमाणे शु સારા સ્પર્શ પણાથી પરિણત થયેલ પગલે દુસ્પર્શ પણાથી પરિણત થઈ જાય
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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