SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 938
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाभिगमसूत्र पुक्खरोदस्स' नवरं स्वयम्भूरमणसमुद्रजलम् अच्छम् जात्यम् पश्यम् लघुकम् यथा पुष्करोदसमुद्रस्य । सम्प्रति ये प्रत्येकरसाः प्रकृत्युदकरसास्तांस्तान् पार्यक्येन दर्शयति-कइणं भंते ! समुद्दा पत्तेयरसा पनित्ता ? गोयमा ! चत्तारि समुदा पत्तेगरसा पन्नत्ता, तं जहा-लवणे-वरुणोदे-खीरोदे घयोदे, कइ णं भंते ! समुद्दा पगईए उदगरसेणं पन्नत्ता ? गोयमा ! तओ समुढा पगईए उदगरसेणं पन्नत्ता ? तं जहा-कालोए पुक्खरोए सयंभूरमणे, अवसेसा समुद्दा उस्सणं कि 'अच्छे जच्चे पत्थे जहा पुक्खरोदस्स' वह तो पुप्करोदधि के जल के जैसा स्वच्छ, जातिवंत निर्मल एवं पथ्य है. . ___ अब सूत्रकार यह प्रकट करते हैं कि कौन कौन समुद्र किस किस समुद्र के समान पानी वाले हैं और कौन २ नहीं है-'कणं भंते ! समुद्दा पत्तेगरसा पण्णत्ता' हे भदन्त ! कितने समुद्र प्रत्येक रस वाले हैं अर्थात् दूसरे समुद्रों के साथ जिनका पानी नहीं मिलता है ऐसे हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! चत्तारि समुद्दा पत्तेगरसा पण्णत्ता' हे गौतम ! चार समुद्र प्रत्येक रस वाले कहे गये हैं-'तं जहा' उनके नाम इस प्रकार से हैं'लवणे वरुणोदे खीरोदे घयोदे' लवणसमुद्र, वरुणोदसमुद्र, क्षीरोदसमुद्र, और धृतोदसमुद्र, 'कति णं भंते ! समुहा पगतीए उद्गरसेण एण्णत्ता' हे अदन्त ! कितने समुद्र जिनका पानी आपस में समान हैं ऐसे हैं ? 'गोयमा ! तओ समुद्दा पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ता' है छ. 'णवरं' परंतु स्वयं सूरमा समुद्र पाणी सखाडीना २सना पाने नथी भडे-'अच्छे जच्चे पत्थे जहा पुक्खरोदस्स' मेतो पु४२शाधना पस જેવું સ્વચ્છ જાતિવંત નિર્મળ અને પથ્ય છે. હવે સૂત્રકાર કયા કયા સમુદ્રો કયા કયા સમુદ્રની સરખા પાણી વાળા છે અને કોણ કેની સરખા નથી એ બતાવે છે. 'कइ णं भंते ! समुद्दा पत्तेगरसा पण्णत्ता' मगन टसा समुद्री प्रत्ये રસવાળા છે? અર્થાત્ બીજા સમુદ્રોની સાથે જેનું પાણી મળતું નથી. એવા छ १ मा प्रश्न उत्तरंभा प्रभुश्री गौतमस्वामीन हे छ -'गोयमा ! चत्तारि संमुद्दा पत्तेगरसा पण्णत्ता' 3 गौतम ! या२ समुद्री प्रत्ये? २सवा ४वामी आवेता छ. ते नामी मा प्रभारी छ. 'लवणे वरुणोदे खीरोदे घयोदें सवार समुद्र, १३ समुद्र, क्षारोह समुद्र मन तो समुद्र 'कति णं मंते । समुहा पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ता' 3 भगवन् सा समुद्री पाणी ५२२५२भा सरभु डाय सेवा छ ? 'गोयमा ! तओ समुद्दा पगतीए उद्गरसेणं पण्णत्ता'
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy