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________________ जीवाभिगमसूत्र भगवानाह-नायमर्थः समर्थः, अपितु-इतोऽपीष्टतरो रस: । “खोदोदस्स० ? से जहा णामए उच्छृण जच्च पुंडकाणं-हरियाल पिंडराणं-भेरुंडछणाण वाकालपोराणं-तिभागनिव्वाडिय वाडगाणं-बलवगणरजतपरिगलियमित्ताणं-जे रसे होज्जा वत्थे परिपूए चाउरज्जातगसुवासिए अहियपत्थे लहुए वण्णेणं उववेए भवे' एयारूवे सिया णो इणढे समढे' क्षोदोदसमुद्रस्य जलमास्वादेन कीहक् ? हे गौतम ! यथा नामका-उच्छन्नजात्यपुण्ड्रकाणाम् उच्छ्नाः उन्नता जात्याः जातिसंपन्ना ये पुण्ड्का:-इक्षुविशेपास्तेपाम् इक्षुदण्डानां भेरुण्डतरह का गोघृतवर समुद्र का जल स्वाद में है 'भवे एया स्वेसिया' तो हे भदन्त ! इसी प्रकार का स्वाद वाला गोघृतवर समुद्र का जल है? 'णोतिणठे सम?' हे गौतम ! ऐसा अर्थ समर्थित नहीं हैं क्योकि 'इत्तो इट्टयरो०' घृतादिक समुद्र का जल तो इससे ऊंचा स्वाद में है 'खोदोदस्त' हे भदन्त ! क्षोदोद समुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? 'से जहा नामए उच्छृण जच्च पुंडकाणं हरियाल पिंडराणं भेरुंडछणाण वा कालपोराणे तिभाग निवाडियवागाणं बलवगणरजत परिगालिय मित्ताणं जे य रसे होजा वत्थपरिपूए चाउलातगसुवासिएं अहियपत्थे लहुए वण्णेणं उधवेए' हे गौतम ! जैसा मेरुण्डदेश में जातिवंत गन्ना उत्पन्न होता है और वह पक हो जाने पर हरिताल के समान पीला हो जाता है उस इक्षु गन्ने के टकरों का ऊपर नीचे के भाग को काट कर अच्छे वलिष्ठ बैलों द्वारा चलाये गये यंत्र से रस निकालना चाहिये और उसे कपडे से छान लेना चाहिये कि जिससे प्रमाणे गात१२ समुद्रनु य छे. 'भवे एयारूवे सिया' तो 3 मापन मापा ४२॥ स्वायागु गौघृत समुद्रनु छ ? 'णो इणढे सम?' ७ गौतम ! ये अर्थ समर्थित नथी. भले 'इत्तो इट्टयरा' गातव२ समुद्रनु ore तो तेथी पर पधारे स्वाद पाणुछ. 'खोओदस्स० सावन् क्षाही समुद्रनु वा स्वा पाणु छ ? 'से जहा नामए उच्छूण जच्च पुडकाण हरियाल पिंडराणं भेरुंडछणाणवा कालपोराणं तिभाग निव्वाडियवाडगाणं बलयगणरजंत परिगालिय मित्ताणं जे य रसे होज्जा वत्थपरिपूए चाउज्जातग सुवासिए अहियपत्थे लहुए वण्णेणं उववेए' है गौतम! भे३- शमां तिक्त ગન્ના–સેલડીની ઉત્પત્તિ થાય છે, અને તે પાકે ત્યારે હરિતાલની જેમ પીળી થઈ જાય છે. એ સેલડીના ઉપર અને નીચેના ભાગને કાપીને કહાડી નાખીને સારા બળવાન બળદ દ્વારા ચલાવવામાં આવેલ ચન્દ્રમાંથી 1 - રસ નીકળે છે, અને તે રસને કપડાથી ગાળી લેવે જોઈએ કે જેથી તૃણાદિ ITHHHHHHHHHHHit
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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