SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 907
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. १०५ अरुणादिद्वीपसमुद्रनिरूपणम् ८८५ चक्कवाल० पन्नत्ते' कुण्डलवरावभासं समुद्रं खलु रुचको नाम द्वीपो वृत्तो वलयाकारसंस्थानसंस्थितः सर्वतः संपरिक्षिप्य खलु तिष्ठति स किं समचक्रवाल सं० विषमचक्रवालेन संस्थितः ? हे गौतम ! समचक्रवालेनैव नो विषमचक्रवालेन ० स च कियता - चक्रवालविष्कम्भेण परिक्षेपेण च प्रज्ञप्तः ? गौतम ! संख्येययोजनशतसहस्राणि चक्रवालविष्कम्भेण परिक्षेपेण च । 'सव्वह मणोरमा एत्थ दो देवा - सेसं तहेव' सर्वार्थ- मनोरमौ द्वावत्र देवौ महर्द्धिको पूर्वाऽधिपती भूत्वा यावत्प-ल्योपमस्थितिको संपरिवसतः शेषं तथैव क्षोदोदवरसमुद्रवदेव ज्योतिष्कसूत्रमपि । यह द्वीप समचक्रवाल वाला है या विषमचक्रवाल वाला है ! इस प्रकार से गौतम के पूछने पर प्रभु ने कहा 'गोयमा ! समचक्कवाल० नो विमक्कवालसंठिते' हे गौतम ! यह द्वीप समचक्रवाल वाला है - विषमचक्रवाल वाला नहीं है 'केवतियं चक्कवाल • पण्णत्ते' हे भदन्त इसका समचक्रवाल विष्कम्भ कितना कहा गया है और परिक्षेप कितना कहा गया है ? उत्तर में प्रभु ने कहा है- हे गौतम ! इसका चक्रवाल विष्कम्भ संख्यात लाख योजन का है और परिक्षेप भी इसका इतना ही है 'सव्वट्ट मणोरमा एत्थ दो देवा सेसं तहेव' सर्वार्थ और मनोरम नाम के दो देव यहां पर रहते हैं इनमें एक पूर्वार्धाधिपति है और दूसरा अपराधधिपति है ये दोनों देव महर्द्धिक आदि विशेषणों वाले हैं और यावत् एक एक पल्योपम की स्थिति वाले हैं । चन्द्रादित्यादि ज्योतिष्क देवों के सूत्र तक क्षोदोदवर समुद्र के जैसा આવેલ છે. આ દ્વીપ પણ વૃત્ત—ગેાળ અને વલયના જેવા આકારવાળા છે. ડે ભગવત્ આ દ્વીપ સમચક્રવાલવાળા છે કે વિષમ ચક્રવાલ વાળા છે ? આ પ્રમાણે गौतम स्वामीना पूछवाथी उत्तरमां प्रभुश्री अ - 'गोयमा ! समचक्कवाल० नो विसम चक्कवाल० संठिते' हे गौतम । आा द्वीप समय वास वाणी छे. विषभ यटुवासवाणो नथी. 'केवतियं चक्कवाल० पण्णत्ते' हे भगवन् तेना सभ• ચક્રવાલ વિષ્ઠ કેટલેા કહેલ છે? અને તેના પરિક્ષેપ કેટલા કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રીએ કહ્યું કે હે ગૌતમ ! તેના સમચક્રવાલ વિષ્ણુભ સ ંખ્યાત લાખ ચેાજનના છે. અને તેના પરિક્ષેપ પણ એટલેાજ છે. 'सव्वट्ठमनोरमा एत्थ दो देवा सेसं तहेव' सर्वार्थ भने भनोरम नाभना मे દેવે ત્યાં નિવાસ કરે છે. તે પૈકી એક પૂર્વના અધિપતિ છે, ખીન્ને અપરાષ્ટ્રના અધિપતિ છે. આ બન્ને દેવા મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણા વાળા છે. અને યાવત્ એક પચેાપમની સ્થિતિ વાળા છે. ચંદ્ર સૂર્ય' વિગેરે ચેતિષ્ઠ
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy