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________________ ६० जीवामिगमसूत्र स्परमवलोकमाना अवतिष्ठन्ते यथा नूनं परस्पर सौभाग्या सहनतस्तियंग्वलिताक्षि कटाक्षः परस्परं खिद्यन्ते इव प्रतिभातीति 'पुढवी परिणामाओ सासयभाव मुवगयाओ' पृथिवी परिणामरूपाः शाश्वतभावमुपगताः।। अयं भावः-इमाः शालभञ्जिकाः विजयद्वारवदेव सदावस्थानात् शाश्वतभावं नित्यत्वं प्राप्ताः नित्या इत्यर्थः, तथा-'चंदाणणाओ' चन्द्राननाः, चन्द्रवदाननंमुखं यासां ताश्चन्द्राननाः, यथा पूर्णचन्द्रः पूर्णिमायामाल्हादकैर्गुणेर्लोकान् रञ्जयति तथा इमा अपि शालभञ्जिकाः दर्शकानामानन्दजनकलात् चन्द्रानना इति व्यपदिश्यते । 'चंदविलासिणीओ' चन्द्रविलासिन्यः चन्द्रवद् विलसन्तीत्येवं शीला इति, 'चंदद्धसमनिडालाओ' चन्द्रार्द्धसमललाटाः, चन्द्रार्द्धन-अष्टमी चन्द्रेण सम-तुल्यं ललाटं यासां तास्तथा, 'चंदाहिय सोम्मदंसणाओ' चन्द्राधिकसौम्यदर्शनाः, चन्द्रादपि अधिकं सौम्य-कान्तिमदर्शनमाकारो यासां तास्तथा, 'उक्का इव उज्जोएमाणीओ' उल्का-मूलतो विच्छिन्नज्वलदग्निपुञ्जइयोद्योतमाना, 'विज्जुएक दूसरे के सौभाग्य के असहन भाव से खेद खिन्न सी ही हो रही हैं। 'पुढवी परिणामाओ सासयभावनुवगयाओं ये शालभलिकाएं पृथिवी परिणाम उपगत हैं-अर्थात् पार्थिवकाय है और विजय द्वारकी तरह नित्य हैं 'चंदाणणाओ' इनका मुख चंन्द्रमाका जैसा है चन्द्रमाजिस प्रकार पूर्णिमाके दिन अपने शीतलादि गुणों द्वारा दर्शक जनों के चित्त को आल्हादित करता है उसी प्रकार ये भी दर्शक जनों के मन को मुदित करती हैं 'चंदविलासिणीओ' चंद्रमंडल की तरह ये सुशोभित होती हैं 'चंदद्धसमनिडालाओ' इनका ललाट अष्टमी के चन्द्रमा के जैसा सुशोभित है 'चंदाहिय सोमदंसणाओ' चन्द्र के दर्शन से भी अधिक इनका दर्शन है-अर्थात् चन्द्र के आकार से भी इनका आकार अधिक कान्तिवाला है 'उक्का इव उज्जोएमाणीओ' उल्का-मूल से मे युक्त मानी २ही. छ. 'पुढवी परिणामाओ सासयभावमुवगयाओ' . शास ભંજીકાઓ પૃથીવી પરિણામ વાળી છે. અર્થાત્ પાર્થિવ શરીર વાળી છે. मन विश्य द्वारनी भ नित्य छ. 'चंदाणणाओ' तेभानु भुष यंद्रभा समान છે. એટલે કે ચંદ્રમા પૂર્ણિમાને દિવસે પિતાના શુભ, શીતલ વિગેરે ગુણેથી જેનારાઓના મનને આલ્હાદવાળા બનાવે છે. એ જ પ્રમાણે આ પણ જેનારાमाना भन मान हित ४२ छे. 'चंदविलासिणीओ' यद्रमसनी रेभ से सुशोलित डाय छे. 'चंद्धसमनिडालाओ' ते मा प्रदेश सदाट 28मना यद्रभाव छ. 'चाहिय सोमदंसणाओ' यद्रनाशनथी पशु क्वारे सुंदर તેમનું દર્શન છે. અર્થાત્ ચંદ્ર કરતાં પણ તેઓને આકાર વધારે કાન્તિ યુક્ત
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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