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________________ प्रमेययोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.९४ लवणसमुद्रस्य संस्थाननिरूपणम् १८१ 'जंबुए य सुदंसणाए जंबूदीवाहिवई अणाढिए णामं देवे महिडिए जाव पलिओवमठिईए परिवसंति तस्स णं पणिहाए लवणसमुद्दे नो उवीलेइ नो उप्पीलेइ नो चेव णं एगोदगं करेइ' जम्ब्यां खलु सुदर्शनायां जम्बूद्वीपाधिपतिः अनादृत नाम देवो महर्द्धिको यावत्पल्योपमस्थितिकः परिवसति तस्यैव प्रणिधानेन लवणसमुद्रो नाऽवपीडयति नोत्पीडयति न चैव खल्ल लवणः एकोदकं करोति मर्यादामालम्बते । 'अदुत्तरं च णं गोयमा ! लोगट्टिई लोगानुभावे जणं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो उवीलेइ नो उप्पीलेइ नो चेव णं एगोदगं करेइ' अथ-इतः लेति नो चेवणं एगोदगं करेति' सीता सीतोदा आदि महानदियों में जो महर्द्धिक आदि विशेषणों वाली देवियां रहती हैं उनके प्रभाव से, देवकुरु और उत्तरकुरु में जो प्रकृति भद्र आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाले मनुष्य रहते हैं-उनके प्रभाव से, मन्दर पर्वत पर जो महद्धिक आदि विशेषणों वाले देवता रहते हैं उनके प्रभाव से एवं सुदर्शना अपर नाम वाले जम्बूवृक्ष पर जो महर्दिक आदि विशेषणों वाले देवता रहते हैं उनके प्रभाव से तथा जम्बूद्वीप के अधिपति महद्धिक आदि विशेषणों वाले अनाहत नामके देवता की जिसकी यावत् एक पल्योपम की स्थिति होती है उनके प्रभाव से लवणसमुद्र जम्बूद्वीप को पीडित नहीं करता है उत्पीडित नहीं करता है, जलमग्न नहीं करता है किन्तु वह अपनी मर्यादा में ही रहता है 'अदुत्तरं च गोयमा ! लोगद्विती लोगानुभावे जपणं लवणसमुद्दे जंबदीवं दीवं नो उचीलेति, नो उप्पीलेति नो चेवणं एगोदतें करेति' अथवा-हे गौतम! ण एगोदगं करेंति' सीता सीताह। विगैरे भी नहीयामा भद्धि विगेरे વિશેષણવાળી જે દેવી રહે છે, તેમના પ્રભાવથી દેવકુરૂ અને ઉત્તરકુરૂમાં જે પ્રકૃતિભદ્ર વિગેરે પૂર્વોક્ત વિશેષ વાળા મનુષ્ય રહે છે, તેઓના પ્રભાવથી, મન્દર પર્વત પર જે મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણવાળા દે રહે છે. તેઓના પ્રભાવથી તથા સુદર્શના પર નામવાળા જંબૂ વૃક્ષ પર મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણેવાળા જે દેવો રહે છે. તેઓના પ્રભાવથી તથા જંબુદ્વીપના અધિપતિ મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણે વાળા અનાદત નામના દેવ કે જેઓની સ્થિતિ યાવત્ એક પલ્યોપમની છે. તેમના પ્રભાવથી લવણસમુદ્ર જંબૂદ્વીપને પીડા કરતો નથી. ઉત્પીડિત કરતો નથી. જલગ્ન કરતો નથી અર્થાત્ પાણીમાં ડુબાડી દેતે नथी. परंतु ते पोताना मर्यामा रहे छे. 'अदुत्तरं च णं गोयमा ! लोगद्विति लोगानुभावे जण्णं लवणसमुहे जंबु दीवं दीवं नो उवीर्लेति नो उप्पीले ति नो चेव जी० ८६
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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