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________________ ६५४ जीवाभिगमसूत्र गंता वालागं उव्वेहपरिवुड्डोए पगते' पश्चनवनिं २ वालाग्राणि गत्वा-एक वालाग्रम्-उद्वेधः (गाम्भीर्यम्) परिवृद्धिश्च तथा उद्वेधपरिवृद्धया प्रज्ञप्तम् । 'पंचाणउई २ लिक्खाओ गंता लिक्खा उज्वेह परिवुट्टीए पनत्ते' पञ्चनवति २ लिक्षा गत्वा-एका लिक्षा-उद्वेधपरिद्धया प्रज्ञता । 'पंचाणउइ २ जवाभो नवमज्जे अंशुलविहत्थि रयणी कुच्छी धणुगाउय जोयणजोयणसय जोयणमहस्साई गंता जोयणसहस्सं उव्वेहपरिचुडीए' एवम्-पञ्चनवति २ यवान् गत्वा यवमध्यान् वालग्गाई गंता वालग्गं उध्वेह परिवुडीए पन्नत्ते' ९५-९५ वालाग्ररूप स्थानपर जाने पर एक चालान की उद्वेध परिवृद्धि-गहराई की वृद्धि होती है 'पंचाणाति २ लिक्खाओ गंता लिक्खाउवेह परिवुडीए पन्नत्ते' १५-१५ लिक्षा प्रमाण स्थान पर जाने पर एक लिक्षा प्रमाण उद्वेध परिवृद्धि होती है 'पंचाणउइ जवाओ जवमज्झे अंगुल विहत्थिरयणी कुच्छी धणुगाउय जोयण जोयणसतजोयणसहस्साई गंता जोयणसहस्सं उध्वेहपरिवुडीए' इसी तरह १५-१५ यूका प्रमाण स्थान पर जाने पर एक यूका प्रमाण उद्वेध परिवृद्धि होती है० ९५-९५ यवमध्य प्रमाण स्थान पर जाने पर एक यवमध्यप्रमाण उद्वेध परिवृद्धि होती है ९५-९५ अंगुल प्रमाण रूप स्थान पर जाने पर एक अंगुल प्रमाण उद्वेध परिवृद्धि होती है ९५-९५ वितस्ति प्रमाणरूप स्थान पर जाने पर एक विस्तप्रमाणरूप उद्वेध परिवृद्धि होती है ९५-९५ रत्निप्रमाण रूप स्थान पर जाने पर एक रत्नि हाथ प्रमाण वालग्गाई गंता वालगं उन्वेहपरिखुड्ढीए पण्णत्ते' ८५ पया ८५ पयागु વાલાગ્રરૂપ સ્થાન પર જવાથી એક વાલાઝની ઉશ્કેલ પરિવૃદ્ધિ અર્થાત ઉંડાઈની वृद्धि थाय छे. 'पंचाणउतिं पंचाणउतिं लिक्खाओ गंता लिक्खा उव्वेह परिखुड्ढीए पण्णत्ते' ८५ या ८५ या eीक्षा प्रमाणु स्थान५२ पाथी मे दीक्षा प्रभाष्य वेध परिद्धि थाय छे. 'पंचाणउइ जवाओ जवमझे अंगुलविहत्थि रयणी कुच्छी धणुगाउय जोयण जोयणसतजोयणसहस्साई गंता जोयणसहस्स ऊन्वेहपरिखुड्ढीए' गेल प्रमाणे. ८५ पयार ८५ पया यू प्रभावामा स्थान પર જવાથી એક યૂકા પ્રમાણુ ઉોધ પરિવૃદ્ધિ થાય છે. · પંચાણુ ૫ પંચાણ યવમધ્ય પ્રમાણુવાળા સ્થાન પર જવાથી એક યવમધ્ય પ્રમાણુ ઉંધ પરિવૃદ્ધિ થાય છે. ૯૫ પંચાણ ૯૫ પંચાણ આંગળ પ્રમાણુવાળા સ્થાન પર જવાથી એક આંગળ પ્રમાણ ઉઠેલ પરિવૃદ્ધિ થાય છે. ૯૫ પંચાણ ૯૫ પંચાણ વિતસ્તિ પ્રમાણવાળા સ્થાન પર જવાથી એકવિતસ્તિ પ્રમાણ રૂપ ધ પરિવૃદ્ધિ થાય છે. ૯૫ પંચાણુ લ્પ પંચાણું રનિ પ્રમાણુ રૂપ સ્થાન પર જવાથી એક પત્નિ
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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