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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.८६ वेलधरनागराजस्वरूपनिरूपणम् ५७१ ड्रिए जाय' स खलु शंखावासपर्वतः एकया पावरबेदिकया एकेन बनषण्डेन च समलंकृतः यावदर्थः अत्र सर्व गोस्तूपवदेव वक्तव्यं सिंहासनं सपरिवारम् । सम्प्रति नामनिवन्धनं पृच्छति-हे भदन्त ! आवासपर्वतस्याऽस्य शंख इति नाम्नि को हेतुः ? भगवानाह-हे गौतम ! पर्वतेऽत्र-क्षुल्लाक्षुल्लिका वापीषु यावद्विलपंक्तिषु वहुत्पळ यावत्-शतसहस्रपत्राणि शंखाम शंखाकाराणि शंखवत् श्वेतानि भुजगेन्द्रश्चात्त्यो महर्टिकादि यावद्विशेषणविशिष्टः शिष्ट शंखनामा पल्योपमस्थितिमान्निवसति, तत्तत्सम्पादेतस्य शंखो नाम भवतीति । 'रायहाणीए पच्चत्थिमेणं संखस्स आवासपव्वयस्स संखा नामं रायहाणी पर्वत के जैसा ही सपरिवार सिंहासन का वर्णन कर लेना चाहिये अप जब गौतम ने इस पर्वत के इस प्रकार के नाम होने के कारण में प्रश्न किया तो इसके उत्तर में प्रभु ने उन से ऐसा कहा कि हे गौतम ! इस पर अनेक छोटी घडी वापिकाएं हैं यावत् चिलपक्तियाँ हैं उन सब में अनेक उत्पल यावत् शतसहस्त्र दल वाले कमल हैं इन सब की आभा और आकार शंख के जैसे हैं अर्थात् शंख के जैसे सब श्वेत हैं तथा नागकुमार राज शंख नाम का एक देव यहाँ रहता है यह महर्द्धिक आदि विशेषणों वाला है एक पल्योपम को इसकी स्थिति है इस कारण इस पर्वत का नाम शंखावास पर्वत हुआ है यही सब कथन उत्तर रूप में प्रत्येक कथन इस सूत्र द्वारा कहा है-'बहुओ खुड्डाखुडियाओ जाव बहई उप्पलाई संखाभाई संखवण्णाईसंखे एत्थ देवे महिड्दिए जाव' द्वारा किया है 'रायहाणोए पच्चस्थिमेणं संखस्स એક વનડથી સુશોભિત થયેલ છે. અહીંયા ગોતૂપ આવાસ-પર્વતના જેવું જ સપરિવાર સિંહાસનનું વર્ણન કરી લેવું. ગૌતમસ્વામીએ જ્યારે આ પર્વતના આ પ્રકારનું નામ થવાના કારણ સંબંધમાં પ્રશ્ન કર્યો ત્યારે તેના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રીએ એવું કહ્યું કે-હે ગૌતમ ! તેના પર અનેક નાની મેટી વાવે છે. યાવત્, બિલપતિ છે. એ બધી પંકિતમાં અનેક ઉત્પલે યાવત્ શતપત્ર સહસ્ત્રપત્રોવાળા કમળો છે, તે બધાની આભા-કાંતી અને આકાર શંખના જેવું છે. અર્થાત્ શંખના જેવા એ શ્વેત છે. તથા નાગકુમાર રાજ શંખ નામના દેવ ત્યાં રહે છે. એ મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણ વાળા છે. એક પલ્યોપમની તેમની સ્થિતિ છે. એ કારણથી આ પર્વતનું નામ શંખાવાસ पति से, प्रभारी थये छ. मे तमाम ४थन उत्तर ३थे 'बहुओ खुडा खुड्डियाओ जाव बहुई उप्पलाई संखवण्णाई संखे एत्थ देवे महिड्ढिए जाब' मा . सूत्र द्वारा ४२ छ. 'रायहाणी पञ्चत्थिमेणं संखस्स आवासपव्वयस्स स.
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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