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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.. सु.८६ वेलंधरनागराजस्वरूपनिरूपणम् ५५९. मूले दसबावीसे जोयणसए आयामविक्खंभेणं' मूलदेशे दशयोजनानां शतानि द्वाविशत्यधिकानि आयामविष्कम्भाभ्याम् 'मज्झे सत्त तेवीसे जोयणसए' मध्यभागे योजनानां सप्तशतानि त्रयोविंशत्यधिकानि 'उवरिं चत्तारि चउवीसे जोयणसए आयामविक्खंभेणं' उपरि आयामविष्कम्भाभ्याम् चत्वारि योजनशतानि चतुर्विंशत्यधिकानि । 'मूले तिनि जोयणसहस्साई-दोन्नि य बत्तीमुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं मज्झे दो जोयणसहस्साई-दोणि य छलसीए जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं उवरि एग जोयणसहस्सं तिण्णि य ईयाले जोयणसए किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं' मूले-त्रीणि योजनसहस्राणि द्वे च योजनशते द्वात्रिंशदधिके किश्चिद्विशेषोने परिक्षेपेण, मध्ये द्वे योजनसहस्रे चार सौ रुवातीस योजन की इसकी गहराई है अर्थात् पानी के भीतर यह इतना प्रविष्ट हुआ है 'मूले दस बावीसे जोयणसए आयामविक्खंभेणं' मूल में यह १०२२ योजन का लम्बा चौडा है 'मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसए उवरिं चत्तारि चउवीसे जोयणसए' बीच में सात सो तेइस योजन का लम्बा चौडा है और ऊपर में चारसौ चौबीस योजन का लम्बा चौडा है 'मूले तिन्नि जोयणसहस्साई दोन्निय वत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे परिवखेवेणं' मूल में तीन हजार दो सौ बत्तीस योजन में कुछ कम की इसकी परिधि है 'माझे दो जोयणसहस्साई दोपिणय छलसीए जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं' बीच में दो हजार दो सौ चौरासी योजन से कुछ कम की इसकी परिधि है 'उरि एगं जोयणसहस्सं तिण्णिय ईयाले जोयणसए किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं' ऊपर में इसकी एक हजार આ પર્વત ૧૭૨૧ સત્તરસે એકવીસ રોજન જેટલો ઉંચે છે. ચારસોસવાત્રીસ જનની તેની ઉંડાઈ છે. અર્થાત પાણીની અંદર એટલે તે ઉડો . 'मूले दसबावीसे जोयणसए आयामविक्वंभेणं' ते भूम. १०२२ ४स से वीस या सामे पहाणी छे. 'मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसए उवरिं चत्तारि चउवीसे जोयणसए' क्यमा ७२३ सातसा तेवीस यौन खin पहाणी मने 6५२नी २५ ४२४ यारसा यावीस योगान से सांया पाडाछे. 'मूले तिन्नि जोयण सहस्साई दोन्नीयबत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं' भूगमा ऋण उन२ मस त्रास यानमा ४ मेछी तनी परिधि छ. 'मझे दो जोयणसहरसाई दोणिय छलसीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं' पयमा मे २ सो योशी यौनयी ४४४ पछी तेनी ५ . 'उवरिं एग जोयणसहरसं तिणि य इयाले जोय' न विसेसूणे परिक्खेवेणं' परमi
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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