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________________ जीवामिगमसूत्रे ५३६ पाताले महाकाल : ग्रूपनाम्नि पाताले वेलम्बः ईश्वरनाम्नि पाताले प्रभंजन: परिवसति । 'तेसि णं महापायालाण तओ तिभागा पन्नत्ता' तेषां चतुर्णामपि महापातालानां खलु प्रत्येकं त्रयः त्रिसंख्यकास्त्रिभागा प्रज्ञताः । 'तं जहा' तद्यथा - 'हेठिले तिभागे मझिल्ले तिभागे उवरिमे तिभागे' अधस्तनस्त्रिभागो मध्यम स्त्रिभागः उपरितनस्त्रिभागः । ' ते णं तिभागा तेत्तीस जोयणसहस्सा तिष्णि य तेत्तीस जोयणसयं जोयणतिभागं च वाहल्लेणं' त एते त्रिसंख्यकास्त्रिभागा स्वयस्त्रिँशद् योजनसहस्राणि त्रयस्त्रिंशदधिकानि त्रीणि योजनशतानि योजनस्य त्रिभागं च वाहल्येन प्रज्ञप्ताः इति । 'तत्थ णं जे से हे हिल्ले तिभागे - एत्थणं वाउकाओ संचिति' तत्र त्रिभागये योsस्त्रिभागस्तत्र हि वायुकायस्तिष्ठति, 'तत्थ णं जे से मज्झिल्ले तिभागे जन है । वडवामुख पाताल कलश में काल नाम का देव रहता है केयूप महापाताल कला में महाकाल देव रहना है यृप नाम के महापाताल कलश में वेलम्घ नाम का देव रहता है और ईश्वर नाम के महापाताल कलश में प्रभंजन नाम का देव रहता है 'तेसिणं महापायालाणं तओ विभागा पन्नत्ता' इन महापाताल कलशों के प्रत्येक के तीन त्रिभाग हैं 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं- 'हेट्ठिले तिभागे, मझिल्ले तिभागे, उवरि मे तिभागे' नीचे का त्रिभाग, मध्य का त्रिभाग, और ऊपर का त्रिभाग 'लेणं तिभागे तेत्तीस जोगणसहस्सा तिष्णिय तेत्तीस जोयणसयं जोयणतिभागं च बाहल्लेणं' इनमें से प्रत्येक विभाग तेतीस हजार तीन सौ तेतीस योजन एवं एक योजन के तीन भागों में से एक भाग प्रमाण मोटा है 'तत्थणं जे से हेट्ठिल्ले तिभागे एत्थणं वाउकाओ संचिट्ठ' नीचे का जो त्रिभाग है उसमें वायुकायिक जीव रहता है 'तत्थणं' 'जे से मज्झिल्ले तिभागे નામના ત્ર રહે છે. કેતૂપ નામના મહાપાતાલ કલશમાં મહાકાલ નામના દેવ રહે છે. ચૂપ નામના મહાપાતાલ કલશમાં વેલ બ નામના દેવ રહે છે. ઇશ્વર नाभना भड्डाभातास उशमां प्रलंबन नामना हेव रहे छे. 'तेसिंणं महापायालाणं तओ तिभागा पन्नत्ता' या महायातास उशना हरेउना त्रिला छे. 'त जहा' ? मा प्रभा छे. 'हेट्टिमे तिभागे, मज्जिमे तिभागे, उवग्मेि तिभागे' गो नीयेना त्रिभाग, भीले भध्यने। त्रिलांग, अनेत्रीले उपरना त्रिभाग 'तेणं तिभागे तेत्तीस जोयणसहस्सा तिण्णि य तेत्तीस जोयणसयं जोयणतिभागं हल्लेणं तेभाथी हरे: त्रिलाग તેત્રીસ હજાર ત્રણુસા તેત્રીસ ચેાજન અને એક ચેાજનના ત્રણ ભાગમાંથી એક ભાગ પ્રમાણ માટા છે. 'तत्थ णं जे से हेद्रिले संचिट्ठइ' नीथेनेो ? त्रिभाग छे, तेमां वायुअयि तिभागे एत्थ णं वाउकाओ लवा रहे छे, 'तत्थ णं जे
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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