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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ ७.३ सू.७९ पुष्करिण्याः मध्यगतप्रासादावतंसकः ४८७ कूटः एकया पद्मवरवेदिकया 'एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते' धनषण्डेनैकेन सर्वतः समन्तात्संपरीतो वेष्टितः 'दोहवि वण्णओ'. द्वयोरपि वर्णन मणिस्पर्शान्तं पद्मवरवेदिकायाः वनपण्डस्य चाऽऽयामादिमियथानिर्दिष्टस्याऽच्छ: इलक्ष्णो यावत्प्रतिरूपः । 'तस्स णं कूडस्स उवरि-तत्कूटोपरि खलु-विहुसमरमणिज्जे भूमिभाए पण्णत्ते' बहुसमरमणीयो भूभिभागः प्रज्ञप्तः 'जाव आसयंति-आलिंगपुक्खरमिति वा-मृदंग इति वा-सरतलमिति बा-आदर्शमंगलमिति वा' इत्यारभ्यमणि वर्णनान्तं समुपवर्ण्य तत्र खलु वहवो वानव्यन्तरदेवा देव्यश्चाऽऽसते शेरते. पुराचीर्णशुभकर्म फल मनुभवन्तो यथा सुखं विहरन्ति । 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एग सिद्धायतणं कोसप्पमाणं' तस्य जैसा निर्मल है यावत् प्रतिरूप है 'सेणं एगाए पउमवरवेइयाए एगण वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते' यह एक पनवर वेदिकासे और वनषण्ड से चारों ओर से व्याप्त हैं 'दोण्हवि वण्णओ' इन दोनों का यहां जैसा कि इन के पहिले आयाम और विस्तार आदि के बारा तथा अच्छ आदि विशेषणों द्वारा वर्णन यथास्थान किया गया है वैसा ही वर्णन कर लेना चाहिये 'तस्स णं कूडल्स उवरि पहुसमरमणिज्जे भूमिभाए पण्णत्ते जाव आसयंति' इस कूट के ऊपर एक बहुसमरमणीय भूमिभाग है इस में अनेक वानव्यन्तर देव और देवियां यावत् उठती बैठती रहती हैं इत्यादि रूप से पूर्व की तरह इस भूमि भाग के वर्णन के सम्बन्ध में कथन करना चाहिये ये कथन 'से जहा नामए आलिंग पुक्खरेइवा' इत्यादि सूत्रपाठ से प्रारंभ होता है 'तस्स णं वहुसमरमणिज्जस्त भूमिभागस्त वहुमज्झदेसभाए एगं मा४॥२॥ भने ४ि भगिना वो त नि छ. यावत् प्रति३५ छे. 'सेणं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते' ते ४ पर थी मन नथी सारे मागे घराये छ. 'दोण्ह वि वण्णओ' આ બન્નેનું વર્ણન આયામ અને વિસ્તાર વિગેરે કથનપૂર્વક તથા અચ્છ વિગેરે વિશેષણ દ્વારા પહેલાં એગ્ય સ્થળે કરવામાં આવેલ છે. એ જ પ્રમાણેનું सघणु वर्णन मडीया सभ9 स. 'तस्स णं कूडस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव आसयंति' यूटनी ५२ मे पड़ सभरमणीय भूभि. ભાગ છે. તેમાં અનેક વાતવ્યન્તર દેવ અને દેવિ યાવત્ ઉઠે બેસે છે, વિગેરે પ્રકારથી પહેલાની જેમ આ ભૂમિભાગના વર્ણન સંબંધમાં કહેવું नमे. २0 ४थन से जहा नामए आलिंगपुक्खरेइवा' से सूत्र ५४थी प्रारम थाय छे. 'तस्सणं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एग सिद्धायतणं
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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