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________________ ૩૮૨ जोवाभिगमसूत्रे देराजमहिपी - अनीकाधिपति - रक्षकदेव भद्रासनानां वर्णनम् ' एवं - दक्खिणपुर स्थिमेणवि पण्णासं जोयणा०' चत्तारि पुक्खरिणीओ एवं दक्षिणपूर्वेणापि - आग्नेये पञ्चाशद्योजनान्यवगाह्याऽत्रनन्दा पुष्करिण्यः सन्ति 'तं जहा ' तथथा - 'उप्पलगुम्मा नलिणा - उप्पला - उप्पलज्जला, तं चैव पमाणं तहेब पासायवडेंसगो तप्पमाणो' - उप्पलगुल्मा' नलिना उत्पला - उत्पलोत्पला, तदेव प्रमाणं - तथैव तत्प्रमाणः प्रासादावतंसकः, यथा - सुदर्शना जंब्बा ईशाने पूर्वस्यामपि चनपण्डं पञ्चाशद्योजनान्यवगाह्यात्र चतस्रो नन्दापुष्करिण्यः सन्ति, ताः क्रोशमायामेनाऽर्धक्रोशं विष्कम्भेण पश्च धनुः शतान्युद्वेधेन अच्छा ः श्लक्ष्णाः यावत्प्रतिरूपाः । जैसी की पूर्व में प्रासादावतंसक के होने की बात कही गई है वह अब इतने वर्णन के बाद प्रारम्भ होती है सिंहासन की चारों दिशाओं में सामानिक देवों के, अनीकाधिपतियों के और रक्षक देवों के भद्रासन हैं यहाँ पर भद्रासनों का वर्णन कर लेना चाहिये 'एवं दक्खिण पुरत्थिमेणं वि पण्णासं जोयणा चत्तारि पुक्खरिणीओ' इसी तरह से दक्षिण पूर्व के कोने में आग्नेय विदिशा में भी ५० योजन आगे जाने पर यहां पर नन्दापुष्करिणीयां हैं । उन के नाम इस प्रकार से है ' उप्पलगुम्मा, गलिणा, उप्पला, उप्पलुज्जला तं चैव पमाणं' उत्पल गुल्मा, नलिना, उत्पला, उत्पलोज्ज्वला 'तं चैव पमाणं, तहेव पासायवढे सगो तप्पाणी' इनका प्रमोण पूर्ववत् जानना चाहिये अर्थात् जिस प्रकार से सुदर्शना जम्बू के ईशान कोन में जो वनपण्ड है उस से-५० योजन आगे जाने पर चार नंदापुष्करिणियां हैं और वे एक २ कोश की लम्बी और आधे आधे कोश की चौडी है तथा ५०० सौ धनुष બહુ મધ્યદેશભાગમાં જેમ પહેલાં પ્રાસાદાવત સકે હાવાનુ` કહેલ છે, તે પ્રમાણેના પ્રાસાદાવત...સા અહીયાં પણ છે. સિંહાસનાની ચારે દિશાઓમાં સામાનિક દેવાના અનીકાધિપતિચેાના અને રક્ષક દેવેાના ભદ્રાસના છે. અહીયાં ये लद्रासनोनुं वागुन पडेलाना वार्जुन अभाशे उरी सेवु ' एवं दक्खिण पुरस्थिमेणं वि पण्णासं जोयणा चत्तारि पुक्खरिणीओ' भेट प्रमाणे दृक्षि પૂના ખુણામાં અગ્નેય ખુણામાં પણ ૫૦ પચાસ ચેાજન આગળ જવાથી त्यां भागण नही पुष्पुरिया छे. तेना नाम मा प्रभाणे छे- 'उप्पलगुम्मा, णलिना उपला उप्पलोज्जला, तं चेत्र पमाणं तहेव पासायवडे सगो तप्पमाणो' तेनु પ્રમાણ પહેલાના કથન પ્રમાણે સમજવુ અર્થાત્ જે પ્રમાણે સુદર્શનાજમૂના ઇશાન ખુણામાં જે વનખંડ છે, તેનાથી ૫૦ પચાસ ચેાજન આગળ જવાથી ચાર નંદા પુષ્કરિણીયા છે, અને તે દરેક એક કાસ–ગાઉ જેટલી લાંખી અને -
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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