SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयद्योतिका टोका प्र.३ उ.३ सू.७८ जम्बूवृक्षस्य चतुःशाखावर्णनम्, ४७५ सर्वो ज्ञातव्यः जम्ब्वाः यावदात्मरक्षकाणाम् । जंबूः खलु सुदर्शना त्रिभिर्योजनशतैः वनपण्डैः सर्वतः समन्तात् सम्परिक्षिप्ताः तद्यथा-प्रथमेन, द्वितीयेन, तृतीयेन । जब्वाः सुदर्शनायाः पूर्वेण प्रथमं वनपण्डम् पञ्चाशयोजनान्यवगाह्य-अत्र खल्लु महदेके भवनं प्रज्ञप्तम् पूर्व भवनसदृशं भणितव्यम् यावत् शयनीयम् । एवं-दक्षिणेन, वनषण्डों से चारों ओर से घिरी हुई है 'पढमेणं दोच्चेणं, तच्चेणं, इन वनषण्डों के नाम हैं-प्रथम वनषण्ड, द्वितीय वनषण्ड, और तृतीय 'वनषण्ड जंवूए सुदंसणाए पुरथिमेणं पढम वणसंड पण्णासे जोयणाई ओगाहित्ता एत्थर्ण एगे महं भवणे पण्णत्ते' जम्बूसुदर्शना को पूर्वदिशा में जो प्रथम वनषण्ड हैं उससे पचास योजन आगे जाने पर एक विशाल भवन आता है । 'पुरथिमिल्ले भवणसरिसे भाणियव्वे जाव सयणिज्ज' इस भवन का वर्णन महाजम्बूवृक्ष की पूर्वदिशा की शाखा, पर रहे हुए भवन के जैसा ही है-यावतू एक देवशयनीय है यहां तक का वर्णन यहां ग्रहण करना चाहिये 'दाहिणेणं-पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं' इसी तरह के जम्बूसुदर्शना की दक्षिण दिशा में जो प्रथम वनषण्ड हैं उससे पचास योजन आगे जाने पर एक विशाल भवन आता है यह भी-वर्णन में महाजम्बू वृक्ष की पूर्वदिशा की शाखा पर रहे.हुए भवन जैसा ही है यावत एक · देवशयनीय है यहां-तक का वर्णन यहां ग्रहण करना चाहिये इसी तरह से जम्बू सुदर्शना. की पश्चिम दिशा में और उत्तर दिशा में जो प्रथम वनषण्ड है उससे भाषामा छ. मेवा ] वनमाथी ये सारे माथी धेशयेट छे. 'पढमेणं 'दोच्चेणं तच्चेण ' 'वनन नामी २मा प्रभारी छे-प्रथम वनमणी पनमा मन जी पन जिंवूए सदसणाए पुरस्थिमेणं पढमं वणसंडं पंण्णासे जोयणाई ओगाहित्ता एत्थणं एगे महं भवणे पण्णत्ते' सुहश नानी पूर्व दिशामा જે પહેલું વનખંડ છે, તેનાથી પચાસ એજને આગળ જવાથી એક વિશાળ सपन' मा छे. 'पुरथिमिल्लेण 'भवणसरिसे भाणियब्वे जाव सयणिज्ज' मा ભવેનનું વર્ણન મહાજંબૂવૃક્ષની પૂર્વ દિશાની શાખાપર રહેલ 'ભવનની જેમ જ છે. યાવત્ ત્યાં એક દેવશયનીય છે. એ કથન સુધીનું વર્ણન અહીં सभ . 'दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं' से ५ प्रमाणे भूशनानी દક્ષિણ દિશામાં જે પ્રથમ વનખંડ છે. તેનાથી પચાસ પેજન આગળ જવાથી એક વિશાળ ભવન આવે છે. તેનું વર્ણન પણ મહાજંબુવૃક્ષની પૂર્વદિશાની શાખાપર આવેલા ભવનના વર્ણન પ્રમાણે જ છે. ચાવત ત્યાં એક દેવશયનીય છે. એ કથન સુધીનું તમામ વર્ણન અહીંયા કરી લેવું એજ પ્રમાણે જંબુ
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy