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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.७८ जम्बूवृक्षस्य चतुःशाखावर्णनम् ४७१ या सा-उत्तरशाला अत्र खलु एको महान् प्रासादावतंसकः प्रज्ञप्तः तदेव प्रमाण सिंहासनं सपरिवारम् । तत्र खलु या सा उपरिमा विडिमा अत्र खलु एक महत् सिद्धायतनम्-क्रोममायामेनाऽर्धक्रोशं विष्कम्भेण देशोनं क्रोशमूर्ध्वमुच्चस्त्वेन अनेक स्तम्भशतसन्निविष्टम्० वर्णकः त्रिदिशि त्रीणि द्वाराणि पञ्च धनुश्शतानि भाणियव्वं पश्चिम दिशा की शाखा पर एक प्रासादावतंसक है इसके सम्बन्ध में भी वर्णन पूर्व के ही जैसा है इस प्रासादावतंसक में सपरिवार एक सिंहासन हैं। 'तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले साले एत्थणं एगेमहं पासायसडेंसए पण्णत्ते तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं उत्तर दिशा की ओर जो शाखा है वहां पर भी एव वहुत विशाल प्रासादावतंसक है इसका प्रमाण भी पूर्व के जैसा ही है यहां पर भी परिवार सहित एक सिंहासक है 'तत्थणं जे से उवरिम विडिमे एत्थणं एगे महं सिद्धायतणं कोसं आयामेणं अद्ध कोसं विक्खंभेणं देसूर्ण कोसं उच्चत्तणं' जम्बू वृक्ष के ऊपर की जो शाखा है वहां एक बहुत विशाल सिद्धायतन है इसकी लम्बाई एक कोश की है और चौडाई आधे कोश की है यह कुछ कम डेढ कोश का ऊंचा है 'अणेग खंभ सतसन्निविटे वण्णओ तिदिसिं तओ दारा पंचधणुसता अड्ढाइज्ज धणुसय विक्खंभा' इसमें अनेक खंभे लगे हैं। इसका यहां वर्णन कर लेना चाहिये इसके तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं देवार पांच सौ धनुष के ऊंचे और अढाई सौ धनुष के चौडे हैं 'मणिपेटिया पंचधणुપ્રાસાદાવતંસક છે. તેના સંબંધી વર્ણન પણ પહેલા કહ્યા પ્રમાણે જ છે. એ प्रासात'समां सपरिवार से सिडासन छ. 'तत्थणं जे से उत्तरिल्ले साले एत्य णं एगे महं पासायवडिसए पण्णत्ते तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं' ઉત્તર બાજુની જે ડાળ છે ત્યાં આગળ પણ એક ઘણું વિશાળ પ્રાસાદાવતસક છે, તેનું પ્રમાણ પણ પહેલા કહ્યા પ્રમાણે છે, અને ત્યાં પણ પરિવાર सहित मे सिहासन छ, तत्थणं जे से उपरिम पिडिमे एत्थणं एगे महं सिद्धायत्तणे कोस आयामेणं अद्धकोस विक्खंभेणं देसूणं कोसं उड्ढ उच्चत्तणं' જંબૂવૃક્ષની ઉપરની જે શાખા છે. ત્યાં એક ઘણું જ વિશાળ સિદ્ધાયતન છે. તેની લંબાઈ એક કેસ–ગાઉની છે, અને પહોળાઈ અર્ધા કેસની છે. એ કંઈક ४भ हो स यु छे. 'अणेगखंभसयसंनिविढे वण्णओ तिदिसि तओ दारा पंच घणुसया अडूढा इज्जघणुसयविक्खभा' तमा भने स्तनो सागेसा छ, तेनु વર્ણન અહીયાં કરી લેવું જોઈએ. તે સિદ્વાયતનની ત્રણ દિશાઓમાં ત્રણ દરવાજાઓ છે. એ દ્વારે પાંચસો ધનુષ જેટલા ઉંચા છે. અને અટિસે ધનુષની
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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