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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.७४ यमकपर्वतनामादिकनिरूपणम् १९ पर्वतयोरुत्तरस्याम् 'तिरियमसंखेज्जे दीवसमुदे' वीइवइत्ता' तिर्यगसंख्येयान् द्वीपसमुद्रान् व्यतित्रज्य 'अण्णमि जंबुद्दीवेदीवे' अन्यत्रस्थले जम्बुद्वीपनाम्नि द्वीपे 'वारसजीयणसहस्सा ओगाहित्ता' द्वादशयोजनसहस्राण्यवगाह्य 'एत्थ णं जमगाणं देवाणं' अत्रस्थाने यमकयोदेवयोः 'जमगाओ णाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ यमकनामराजधान्यौ प्रज्ञप्ते 'वारसजोयणसहस' द्वादशयोजनसहस्र प्रमाणा सा यमकाभिधानाराजधानी विद्यते इति । 'जहा विजयस्स तहा जाव महडिया जमगा देवा जमगा देवा जमगा देवा' विजयस्य यथा राजधानी तथा यमकराँजधान्या: वर्णनं कर्तव्यम् तत्र यमको देवौ महद्धिको महाद्युतिको महासौख्यौ महाबलौ महाभागौ अतो यमको देवौ यमकौ देवौ इति ॥७४॥ . सम्प्रति इद वताव्यता कथ्यते ___मूलम्-कहिणं भंते ! उत्तरकुराए कुराए नीलवंत दहे णामं दहे पन्नत्ते ? गोयमा ! जमगपव्वयाणं दाहिणेणं अट्रचोत्तीसे प्रव्वयाणं उत्तरेणं' हे गौतम ! दोनों यमक पर्वतों की उत्तरदिशो में तिर्यग् असंख्यात द्वीप समुद्रों को उलङ्घन करके आगे आए हुए 'अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे' दूसरे जम्बूद्वीप में 'वारस जोधणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थणं जमगाणं देवाणं जमगाओ णाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ' १२ हजार योजन आगे जाने पर ठीक इसी स्थान में यमक देवों की यमका नामकी दो राजधानियां हैं। 'जहा विजयस्स तहा जाव महिडिया जमगा देवा जमगा देवा' विजय देव की राजधानी का वर्णन जैसा पहिले किया गया है वैसा ही वर्णन इस यमका राजधानी का है। यहां दो यमक देवों की दो राजधानियां कही गई हैं। अत: दो यमक देव इन दोनों के अधिपति हैं। ये देव महद्धिक आदि रूप पूर्वोक्त विशेषणों वाले हैं ॥७४॥ ઉત્તર હે ગીતમ! અને યમક પર્વતની ઉત્તર દિશામાં તિર્યમ્ અસંખ્યાત दी५ समुद्रीन योगीन माम माता 'वारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं जमगाणं देवाणं जमगाओ णाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ' १२ मार १२ જન આગળ જવાથી બરાબર એજ સ્થાનમાં ચમક દેવેની યમકા નામની शरथानीय। छे. 'जहा विजयस्स तहा जाव महिडूढिया जमगा देवा जमगा देवा' પહેલાં જેમ વિજય દેવની રાજધાનીનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે એજ પ્રમાણેનું તમામ વર્ણ આ ચમકારાજધાનીનું પણ સમજી લેવું. અહીયાં બે ચમક દેવેની બે રાજધાની કહેવામાં આવેલ છે. તેથી બે ચમક દે એ બને નગરીના અધિપતિ છે. એ દેવે મહદ્ધિક વિગેરે પ્રકારના પૂર્વોક્ત તમામ પ્રકારના विशेषणे वाण छ. ॥ सू. ७४ ॥
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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