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________________ ४०० जीवामिगमसूत्रे त्रीणि पल्योपमानि उत्कर्षण 'एगणपण्णराइदिवाई अणुपालणा' एकोनपञ्चाशद्रात्रि दिवानि अनुपालना 'सेसं जहा एगोरुयाणं' शेपं नवरम् इत्यादिना यत्कथितं तदतिरिक्तं सर्वयेकोरुश्मनुजवदेव ज्ञातव्यम् ॥ उत्तरकुरुपु भदन्त ! कति प्रकारका जाति भेदेन गनुप्या वसन्ति ? भगवानाह-हे गौतम ! 'उत्तरकुराएणं कुराए छव्यिहा मारला अणुसज्जति' उत्तरकुरुपु सलु कुरुपु जातिभेदन पडूविधा मनुप्या अनुसज्जन्ति सन्तानेनानुवर्तन्ते इत्यर्थ: 'तं जहा' तद्यथा'पम्हगंधा-मियगंधा-अममा-सहा-तेयाली से-सणिच्यारी' पद्मगन्धा:-मृगगन्याः-अममाः ममत्यरहिताः-सहनशीलाः, तेजस्विन:-शनैश्चारिणः । अत्रोत्तरकुरु विषयकसूत्रसंकलनार्थ संग्रहगाथात्रयं भवति-'उनीवा धणुपुटं भूमीगुम्माइनकी पल्यापन की असंख्यातवें भाग ले होन ती पल्पोपग की है और उत्कृष्ट आयु पूरे तीन पल्योपल की है 'एस्कूण पण्णा रत्ति दियाई अणुपालणा सेसं जहा एगल्याण' ४९ दिन तक ये अपने पुत्र पुत्री रूप युगल की पालना करते हैं बाकी का और सब कथन यहां एकोरुक नामके अन्तर द्वीप के कथन जैसा ही है हे भदन्त ! उत्तरकुरुओं में जोतिभेद को लेकर कितने प्रकार के मनुष्य रहते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'छविहा सणुस्सा अणुसज्जति' हे गौतम ! जाति भेद को लेकर ६ प्रकार के अनुष्य रहते हैं 'तं जहा' जैसे पम्हगंधा, मियगंधा, अममा, सहा, तेथली, सणिच्चारी' पद्म जैसी गन्ध वाले पद्मगंध, मृग जैसी गन्ध वाले मृगगन्ध, ममत्व से विहीन ए अमम, सहनशीलता ले युक्त हुए सहा तेज से युक्त हुए, तेजस्वी, और धीरे२ चलने वाले शनैश्चारी, उत्तरकुरु के विषय के प्रतिपादन करने भनी छे. मने ४५ट आयुष्य ५२॥ ना पक्ष्यापभनु छ. 'एक्कूण पण्णारत्ति दियाई अणुपालणा सेसं जहा एगोरुयाणं' ४८ मेगा पयास हिनत सुधी તેઓ પિતાના પુત્રપુત્રી રૂપ યુગનું પાલન કરે છે. બાકીનું તમામ કથન અહીંયાં એકેક નામના અંતર કીપના કથન પ્રમાણે છે. હે ભગવન ઉત્તર કુરૂઓમાં જાતિ ભેદને લઈને કેટલા પ્રકારના મનુષ્ય રહે છે? આ પ્રશ્નના उत्तरभा प्रभु ४९ छ है-'छवीहा मणुस्सा अणुसज्जति गौतम | सहन न ७ प्रा२ना मनुष्य। २ छ. 'तं जहा' म 'पाहगंधा. मियगधा, अममा सहा, तेयली, सणिच्चारी' पाना २वी गधा मगध, भृगना જેવી ગંધવાળા મૃગાંધ, મમત્વથી રહિત થયેલ અમમ, સહન શીલતા વાળા, સહ, તેજથી યુક્ત થયેલ તેજસ્વી અને ધીરે ધીરે ચાલવાવાળા શનૈશ્ચારી
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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