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________________ ३७२ जोवाभिगमसो पाणयः 'चावपाणिणो' चापपाणयः चारुपाणिणो' चारूपाणयः चम्मपाणिणो चर्मपाणयः 'खग्गपाणिणो' खद्गपाणय 'दंडपाणिणो' दण्डपाणयः 'पासपाणिणो' पाशः प्राशो वा पाणी येषां ते पाशपाणयः एतदेव समुदितगावेन दर्शयति 'नीलपीयरत्तचावचारुचम्मखग्गदंडपासवरधरा' नीलपीतरता चापपारुचर्मस्खादण्डपाशप्रहरणधारिणः 'आयरकखा' आत्मनो रक्षका विजयस्य, 'रक्खोवगा' रक्षोपगाः रक्षाकर्मणि दत्तचित्ताः 'गुत्ता' गुप्ताः नेतानन्ये जानन्ति इमेऽस्यामें हैं ऐसे हैं । कितनेक आत्मरक्षकदेव 'चाबपाणिणो' केवल धनुप ही जिनके हाथों में हैं ऐसे हैं कितनेक आत्मरक्षक देव 'चारूपाणिणो' हाथों में चारु नामक हथियार विशेष लिये हुए हैं। 'चम्मपाणिणो' कितनेक आत्मरक्षकदेव गसे हैं कि जिनके हाथों में चनडे के कोडे हैं कितनेक आत्मरक्षक देव ऐसे हैं कि जिनके 'ग्वग्गपाणिणो' हाथों में केवल तलवार है कितनेक आत्मरक्षक देव ऐसे है कि 'दंडपाणिणो' जिनके हाथों में केवल दण्ड ही है तथा किननेक आत्मरक्षकदेव ऐसे हैं कि 'पासपाणिणो' जिनके हाथों में केवल पाश-जाल-अथवा प्राश -मुग्दर-ही है । इस प्रकार से वे आत्मरक्षक देव 'नीलपीयरत्तचाव. चामचम्म नग्गडपासधरा' नील, पीत, लाल, वर्गों को लिये हुए, केवल धनुष को लिये हुए तथा चार नामक हथियार विशेष को लिये हुए चमडे के कोडों को लिये हुए, तलवारों को लिये हुए तथा दण्डों को एवं पाशों को लिये वहां चारों दिशाओं में पहिले से रक्खे गये भद्रासनों पर बैठे हैं ये आत्मरक्षकदेव विजयदेव के 'आयरडोयामा छ. मेवा उता. मा यात्मरक्ष थे। 'रत्तपाणिगो' सास गना पाये। मना हयामा छ. मेवा उता. तथा सा माम२६४ हेवे। 'चावपाणिणो' पण धनुषा डायामा छ मेवा ता. ॐ माम२५ वो 'चारुपाणिणो' डायामां या३ नामनु थियार विशेष सीधेक्षा ता, 'चरमपाणिणो' टमा मात्म२३४ वागे पोताना डायमा यामाना या घडी ता 'खग्ग पाणिणो सेटमा मात्मरक्ष४ हेवाये थामा तपा। धा२५ ४री ती 'दंडपाणिणो' डेटा गात्मरक्ष५ हेवाये हाथामा वाया घा२५ ४रेस उता. 'पासपाणिणों' ४८४ मात्मरक्ष हेवारी पाताना डायामा पाश-once અથવા પ્રાશ મુગ્ધરાજ ધારણ કરેલા હતા, આ પ્રમાણે તે આત્મરક્ષક દે 'नीलपीयरत्तचावचारुचम्मखग्गदंडपासधारा' नीस, पी, शता, पीना ધનુને જ પોતાના હાથમાં ધારણ કરેલ હતા. તથા કેટલાક આત્મરક્ષક દેવ પિતાના હાથમાં ચામડાના ચાબુકે, તલવારો અને દંડાઓને તથા પાશેને લઈને ચારે દિશાઓમાં રાખવામાં આવેલ લોદ્રાસન પર બેઠેલા હતા. કેટલાક
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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